-कलक्टरों के पास समय की कमी के चलते कुछ जिलों को छोड़कर अधिकांश जिलों में विकास की ठोस और विजन वाली योजनाएं नहीं बन रही। -भविष्य की जरूरत को ध्यान में रखकर सड़क, पुल, ड्रेनेज, अस्पताल, स्कूल, कॉलेजों की योजनाएं नहीं बनने से जनता सजा भुगतने को मजबूर।
-अधिकांश जिलों में कलक्टरों के गांवों में रात्रि विश्राम और जनसुनवाई कार्यक्रम गत कई वर्ष से बंद पड़े हैं।
1. कलक्टर: राजस्व, खनिज, आबकारी समेत अन्य तरह के कर संग्रहण, कोष कार्यालयों की निगरानी, जमीन और सरकारी संपत्ति से जुड़े मुद्दे।
2. मजिस्ट्रेट: जिलों में कानून व्यवस्था बनाना, पुलिस व जेल का सुपरविजन, शांति कायम करने के लिए धारा 144 लागू करवाना, विशेष अपराध और सुरक्षा मामलों में वारंट जारी करना।
3. प्रशासक: जिलों का चीफ प्रोटोकॉल ऑफीसर, एसडीओ-तहसीलदार का सुपरविजन, कर्मचारियों का वेतन और पेंशनरों की पेंशन बनवाना।
4. विकास अधिकारी: जिले में विकास और सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को लागू करवाना, पीडब्ल्यूडी, सिंचाई, ऊर्जा, वन, कृषि और चिकित्सा विभाग में सीधे दखल। विभिन्न विभागों और एजेन्सियों में समन्वय स्थापित करने की जिम्मेदारी।
5. आपदा राहत प्रबंधक: जिला स्तरीय आपदा राहत कमेटी के अध्यक्ष होने के नाते आपदा राहत की प्लानिंग, बाढ़-भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं में राहत कार्य शुरू करवाना और प्रभावितों का विस्थापन।
6. खाद्य व नागरिक आपूर्ति: सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत सरकारी योजनाओं के तहत लोगों को रियायती दर पर खाद्यान्न व अन्य सामग्री वितरण, जमाखोरी रोकना, सरकारी दर पर खाद्यान्न की खरीद।
7. निर्वाचन अधिकारी: लोकसभा से लेकर पंचायत स्तर तक के निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी।
8. अन्य कार्य: अन्य कोई भी सरकारी कार्य जो कि किसी विभाग के अधीन नहीं आ रहे हों, उनकी जिम्मेदारी जिला कलक्टर के पास है।