आजादी के 72 साल हो गए। इन सात दशकों में कमी आना तो दूर, ये घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। अफसरों और पुलिस के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण काम हो गया है, राजनेताओं के आगे-पीछे चक्कर लगाना। समय-समय पर हाजिरी बजाना ताकि मलाइदार फील्ड पोस्टिंग इनाम में मिल जाए। अभी तो चुनाव का बहाना मिला हुआ है इसलिए अपराधियों को खुली छूट है। बलात्कारियों ने तो जैसे पुलिस से सांठ-गांठ कर ली है। पूरा राजस्थान खुला बाड़ा बना हुआ है, चाहे जिसे उठाओ, इज्जत लूटो- पुलिस कुछ नहीं कहेगी। थानागाजी की घटना का उबाल अभी ठंडा नहीं हुआ कि 9 मई को जयपुर के चन्दवाजी में समाजकंटकों ने घर में घुसकर सामूहिक बलात्कार कर दिया। इसी दिन सीकर जिले के फतेहपुर में घर का दरवाजा तोड़ कर घुसे तीन वहशियों ने महिला के साथ दरिंदगी कर डाली। फुलेरा में देहशोषण से पीडि़त एक नाबालिग छात्रा की संदिग्ध मौत हो गई, पर पुलिस बीस दिन सोती रही। उसकी नींद तब खुली जब “पत्रिका” ने मामला उठाया। छात्रा के परिजनों को तो बेशर्म पुलिसवाले थाने से भगा देते थे। बीदासर (चूरू) में तो और भी शर्मनाक घटना हुई जब ससुराल वालों से पीडि़त एक महिला निर्वस्त्र हालत में थाने पहुंच गई।
राजस्थान में दरिन्दों को कितनी ‘आजादी’ है और पुलिस ने किस तरह आंख मूंद रखी है, इसे समझने के लिए यह तथ्य काफी है कि 3 माह में दुष्कर्म के 63 मामले दर्ज हुए और कार्रवाई सिर्फ 3 मामलों में हुई। पिछले साल बलात्कार के 165 मामलों में तो पुलिस ने एफ.आर. ही लगा दी।
पुलिस की निष्क्रियता का आलम यह है कि राजस्थान में रोज 4 से ज्यादा महिलाएं बलात्कार का शिकार हो रही हैं। पूरे विश्व में राजस्थान के नाम पर थू-थू हो रही है। पर किसी के माथे पर शिकन नहीं है। गृह विभाग ने तो आंख-कान सब बंद कर लिए। पुलिस को पीडि़ताओं और उनके परिवारों की बददुआओं का खौफ भी नहीं रहा। यह जरूर है कि घटनाएं घटती हैं तो छोटे कर्मचारियों पर गाज गिर जाती है, बड़े अफसर पता नहीं कौन सी ‘कानून-व्यवस्था’ लागू करने में हमेशा व्यस्त रहते हैं। उन्हें उनके निकम्मेपन की कोई सजा नहीं मिलती।
बलात्कार ही क्यों चुनाव के समय हर तरह के अपराध बढ़ जाते हैं। आज राजस्थान के हर शहर में अतिक्रमणों की बाढ़ आई हुई है। दिन-दहाड़े घरों में घुसकर लूटपाट हो रही है। मानो राजनेताओं, अफसरों और पुलिस ने मिलकर अपराधियों को राजस्थान, यहां के निवासियों और महिलाओं को लूटने का ठेका दे दिया हो। उनको इस समय सत्ता के आगे कुछ दिखाई नहीं दे रहा। कहीं ऐसा न हो वे सत्ता की भागदौड़ में इतने व्यस्त हो जाएं और कु्द्ध जनता सडक़ों पर उतर आए।