स्वास्थ्य विभाग के इन्सपेक्टर्स को फूड एक्ट के तहत संबंधित फर्म पर जाकर नकली व मिलावटी खाद्य सामग्री जब्त करने का अधिकार तो है पर विभाग के अधिकारी मिलावट खोर की एफआईआर तक दर्ज नहीं करा सकते हैं। लिहाजा फूड एक्ट के तहत ही कार्रवाई होती है। एक्ट कानूनी रूप से लचर होने के कारण काफी समय तक दोषी पर कार्रवाई नहीं होती। इसी बीच लिए गए सैंपल भी जांच के लिए अटके रहते हैं और बाद में वे एक्सपायर हो जाते हैं। यही कारण है कि आज तक किसी भी मिलावट खोर को ऐसी सजा नहीं हुई जो मिसाल बन सके।
हाल ही स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों को प्रयोगशालाओं से पत्र प्राप्त हुआ है। पत्र में लिखा है कि जांच के लिए आए सैंपल्स की संख्या ज्यादा है इसलिए निर्धारित अवधी में जांच नहीं हो पाएगी। जांच की प्रक्रिया पूरी होने में समय लगेगा। अब विभाग के अधिकारियों को यह डर सता रहा है कि कहीं जांच के सैंपल खराब हो गए तो उनकी मेहनत पर पानी फिर जाएगा।
. प्रदेश में हैं 12 खाद्य प्रयोगशाला
. सैंपल लेने के लिए 62 फूड इंसपेक्टर
. जयपुर में दिवाली पर लिए 308 सैंपल
. किसी भी सैंपल की जांच रिपोर्ट समय पर नहीं कई बार देखा जाता है कि अधूरी जांच के चलते प्रयोगशालाओं में भेजे गए सैंपल फेल हो जाते हैं। इसका मुख्य कारण कानूनी प्रक्रिया और कभी प्रयोगशालाओं में सैंपल्स का अतिरिक्त भार होने के कारण समय पर जांच नहीं हो पाना है। हालांकि प्रयोगशाला में काम करने वाले कर्मचारियों का कहना है कि सैम्पल में दवा डालकर रखा जाता है ताकि ज्यादा से ज्यादा समय तक वे सही रह सके।
वर्तमान में प्रदेश के अंदर करीब 62 फूड इन्सपेक्टर कार्यरत है। पूरे प्रदेश में सैंपल लेने और उन्हें प्रयोगशालाओं तक पहुंचाने की जिम्मेदारी इन्ही पर है। यह संख्या कम होने के कारण नकली व मिलावटी खाद्य सामग्रियों का धंधा करने वालों के हौंसले बुलंद रहते हैं। चाहकर भी सभी दोषियों के खिलाफ कार्रवाई पूरी नहीं हो पाती।
मिलावटी खाद्य सामग्री की जांच के लिए पहले प्रदेश में छह प्रयोगशाला हुआ करती थी। सरकार ने छह नई प्रयोगशाला और चालू की है। ऐसे में 12 प्रयोगशाला होते हुए भी इसका पूरा फायदा आम लोगों को नहीं मिल पा रहा है। हाल यह है कि इन प्रयोगशालाओं में पुराने केस निपटते नहीं हैं और नए मामले सामने आ जाते हैं। ऐसे में खाद्य नमूनों की जांच समय पर होना मुमकिन नहीं हो पाता है।