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Diwali 2017: 86 साल पहले जयपुर में जलाए गए थे 147 मण देसी घी के दीये, दो पीढिय़ों के बाद हुआ था इस महाराजा का जन्म

दिवाली के दिन गोविंददेवजी के दर्शन कर 101 सोने की मोहरें चढ़ाई और दूसरे सभी मंदिरों में चांदी के 52 हजार कलदार रुपए भेंट किए…

जयपुरOct 18, 2017 / 07:01 pm

dinesh

city palace
जयपुर। ढूंढाड़ रियासत में 1931 की दिवाली बहुत खास खुशियां लेकर आई। दिवाली से एक पखवाड़ा पहले ही मानसिंह द्वितीय के पुत्र भवानी सिंह का जन्म दो पीढिय़ों के बाद हुआ था। सवाई राम सिंह व उनके बाद राजा बने माधोसिंह के पुत्र नहीं होने पर गोद के राजा बनाने पड़े थे। पुत्र जन्म की खुशी में दिवाली पर शहर और जुड़े ठिकानों में करीब 147 मण देशी घी के दीप जलाए गए।
जयपुर फाउंडेशन के सियाशरण लश्करी के पास मौजूद रिकार्ड के मुताबिक पुत्र जन्म से हर्षित सवाई मानसिंह ने दिवाली के दिन गोविंददेवजी के दर्शन कर 101 सोने की मोहरें चढ़ाई और दूसरे सभी मंदिरों में चांदी के 52 हजार कलदार रुपए भेंट किए। सन् 1942 में आठ नवम्बर को दिवाली के दिन जनानी ड्योढ़ी में दीये जलाने के लिए दो मण आठ सेर तिल्ली का तेल मंगाया गया। इस तेल से करीब साढ़े चार हजार मिट्टी के बने बड़े दीये जलाए गए।
रुप चतुर्थी के दिन ड्योढ़ी में पूजन के लिए 27 कुंओं का पवित्र जल और हाथियों के ठाण की मिट्टी मंगाई गई। मंगलाराम खाती ने लक्ष्मी पूजन की तस्वीर लाने की व्यवस्था की। शानदार आतिशबाजी के बाद कर्मचारियों को गुड़ व मिठाई बांटी। ब्रिगेडियर भवानी सिंह की मातुश्री मरुधर कंवर के महल में पं. हरिहर नाथ सुखिया ने लक्ष्मी पूजन करवाया।
पं. गोकुल नारायण ने सिटी पैलेस के महल में लक्ष्मी पूजन करवाया। दिवाली के दूसरे दिन गाय बैलों और बछड़ों के सींगों पर तेल व गेरु लगाकर पूजा की। 1949 की दिवाली के पहले गायत्री देवी के पुत्र जगत सिंह का जन्म होने से राजपरिवार में सूतक रहा। विद्वान आचार्य दुर्गा लाल ने लक्ष्मी पूजन करवाया। दिवाली के दिन चन्द्र महल का प्रीतम निवास गीत संगीत की महफिलों से गूंज उठता।
शरबता निवास की छत पर सफेद बिछायत होती। दरबार सामंत और सभी विशिष्ट मेहमान काली पोशाक पहन कर आते। चांदी के वर्क में लिपटी बरफी और शर्बत से स्वागत होता। महाराजा भी काली जरी का कमरबंद अचकन और जरी का लहर साफा पहने रंग महल की छत की महफिल में शामिल होते। इसमें रानियां भी काली झिलमिलाती जरी के सितारों पोशाकें पहन कर आती। फिर जयपुर के नामी शोरगर पहले सिटी पैलेस और बाद में देर रात तक रामबाग में आतिशबाजी के पिटारे को खोलते।

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