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10 बार MLA, 3 बार CM, 1 बार उपराष्ट्रपति, जानिए ‘बाबोसा’ के जीवन के कुछ रोचक पहलू

भैंरोसिंह शेखावत की पुण्यतिथि पर जानिए उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें

जयपुरMay 15, 2019 / 12:10 pm

Nidhi Mishra

former vice president bhairon singh shekhawat interesting facts

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जयपुर। भैंरोसिंह शेखावत ( death anniversary Bhairon Singh Shekhawat ) राजस्थान के सर्वमान्य नेता थे। वे दस बार विधायक रहे तीन बार मुख्यमंत्री रहे, तीन बार राजस्थान विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे, एक बार राज्यसभा सदस्य रहे तथा एक बार भारत के उपराष्ट्रपति रहे। भैंरोसिंह शेखावत ( bhairo singh shekhawat ) जनता के बीच बाबोसा के नाम से जाने जाते थे। वे भारतीय जनसंघ की पहली पीढ़ी के नेताओं में से थे। आम आदमी को भय, भूख तथा भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने पुलिस की नौकरी छोड़कर राजनीति की राह चुन ली थी। वे अटल बिहारी वाजपेयी तथा लालकृष्ण आडवानी के साथ कंधे से कंधा लगाकर आजीवन संघर्ष करते रहे। उन्होंने सड़कों पर लाठियां खाईं, जेल गए, भूखे रहे लेकिन सत्य के प्रति अपनी निष्ठा से कभी नहीं डिगे। यही कारण था कि इंदिरा गांधी युगीन राजनीति में वे दूसरे ध्रुव का प्रतीक बन गए।
भैंरोसिंह शेखावत की राजनीति आम आदमी के दिन-प्रतिदिन के जीवन संघर्षों को स्वर देती थी। सामंतवाद से उन्हें बचपन से घृणा थी और वे राजनीति में भी सामंतवादी प्रवृत्ति को नापसंद करते थे। राजस्थान का शायद ही कोई गांव था जिसमें भैंरोंसिंह नहीं गए। ऐसा शायद ही कोई आदमी था जिसे वे जानते हों और उसके बेटों-पोतों के नाम उन्हें पता नहीं हों। भारत के समस्त राजनीतिक दलों में उनके प्रति आदर और सम्मान था।

प्रसिद्ध थी अटल, आडवाणी और भैंरो सिंह की दोस्ती
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ( Former PM Atal Bihari Vajpayee ) , बीजेपी के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी ( Lalkrishna Advani ) और पूर्व उपराष्ट्रपति भैंरो सिंह के बीच सियासत से इतर दोस्ती थी। खास बात ये है कि तीनों के इस रिश्ते का अध्याय भी राजस्थान से ही शुरू हुआ था। अटल बिहारी वाजपेयी का राजस्थान से सियासी ही नहीं, बल्कि भावनाओं का रिश्ता भी था। वह भैंरो सिंह शेखावत की बेटी की शादी में जब कन्यादान करने राजस्थान आये थे तब इस रिश्ते की हकीकत को लोगों ने सियासत से परे जाकर समझा। अटल, आडवाणी और भैंरो सिंह के संयुक्त दुर्लभ चित्रों से सुसज्जित पहला फोटो राजस्थान में ही खींचा गया था।

सती प्रथा के विरोध में उतरे ( sati pratha in hindi )
राजस्थान में जब रूप कंवर सती कांड सामने आया तो पूरा राजपूत समाज सती प्रथा की हिमायत में खड़ा हो गया था, लेकिन बाबोसा इसके विरोध में उतर आए। इस पर राजपूत समाज का एक बड़ा हिस्सा उनके विरोध में खड़ा हो गया, लेकिन ये विरोध उनको विचलित नहीं कर सका। ऐसे समय जब कोई नेता अपनी जाति या खाप की पंचायत के आगे खड़े होने की हिम्मत नहीं करता, ये शेखावत ही थे जो डटकर अपनी बात पर अड़े रहे।

मुसलमान उनको एक धर्मनिरपेक्ष नेता मानते थे
राममंदिर के निर्माण और बाबरी मस्जिद के विध्वंस के लम्हों में कभी उन्हें वैसी उन्मादी बातें करते नहीं देखा जैसे उनकी पार्टी के लोग कर रहे थे। बल्कि जब उनके दो मंत्रियो ने अयोध्या में कार सेवा में शिरकत की ज़िद की तो शेखावत ने उन दोनों को अपने मंत्रिमंडल से मुक्ति दे दी। मुसलमान उनको एक धर्मनिरपेक्ष नेता मानते थे। मुख्यमंत्री के नाते उन्होंने अन्त्योदय जैसे कार्यक्रम शुरु किए और ग़रीब को गणेश मानने जैसे नारों को अपनी सरकार का ध्येय वाक्य बनाया।
राजनीतिक मतभेदों को नहीं होने दिया हावी
गंभीर राजनीति हो या तनाव के लम्हे, शेखावत हास्य के क्षण ढूंढ लेते थे। उनके दोस्त सभी दलों में थे, शायद सभी दिलो में भी। उनके मुख्यमंत्री रहते एक बुज़ुर्ग वामपंथी नेता जब अनशन पर बैठे और तीन दिन हो गए तो शेखावत ने अपने गृह मंत्री को भेजा और कहा कि उन्हें मनाकर अनशन से उठाओ। उन्होंने राजनीतिक मतभेदों को कभी अपने मानवीय दृष्टिकोण पर हावी नहीं होने दिया।

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