गहलोत ने पत्र में लिखा है कि संसद में हाल ही में पारित बिल संख्या 56 के माध्यम से बी.आर. एक्ट के सेक्शन 10 एवं 10 ए को सहकारी बैंकों के लिए प्रभावी कर दिया गया है। इन संशोधनों के माध्यम से सहकारी बैंको के संचालक मण्डल के 51 प्रतिशत सदस्यों के पास प्रोफेशनल अनुभव होना आवश्यक कर दिया गया है, जो कि व्यवहारिक रूप से संभव नहीं है। उन्होंने कहा कि सहकारी बैंकों को वाणिज्यिक बैंकों की भांति शेयर एवं प्रतिभूतियां जारी करने का अधिकार शेयरधारकों के प्रतिनिधित्व ‘एक व्यक्ति – एक वोट’के सहकारी सिद्धांत के विपरीत उसकी शेयरधारिता से अधिक प्रतिशत पर जो कि समय-समय पर सेक्शन 12 के अन्तर्गत आरबीआई द्वारा निर्धारित की जायेगी, दिए जाने का प्रावधान है, जो कि सहकारिता के मूल सिद्धान्तों के विपरीत है।
मुख्यमंत्री गहलोत ने पत्र में कहा कि राजस्थान सहकारी सोसायटी अधिनियम, 2001 के विभिन्न प्रावधानों में समिति के पदाधिकारियों द्वारा निर्धारित कर्तव्य एवं मापदण्ड में किसी प्रकार की त्रुटि करने पर संचालक मण्डल को भंग करने का अधिकार रजिस्ट्रार, सहकारी समितियां में निहित है। सहकारी बैंकों में वित्तीय अनियमितता पाए जाने पर आरबीआई की अनुशंषा पर रजिस्ट्रार, सहकारी समितियां द्वारा संचालक मण्डल को भंग करने के प्रावधान हैं। संशोधन के बाद ये समस्त अधिकार आरबीआई को दे दिए गए हैं। परिवर्तित व्यवस्था से सहकारी बैंकों पर राज्य सरकार के सहकारी विभाग का प्रभावी नियंत्रण नहीं रह पाएगा।
गहलोत ने लिखा कि कई संशोधन सहकारिता के मूल सिद्धांतों के विपरीत हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री से आग्रह किया है कि सहकारी बैंकों में ग्रामीण पृष्ठभूमि के सदस्यों को देखते हुए प्रोफेशनल अनुभव आवश्यक होने की शर्त तथा अन्य संशोधनों पर सहकारी बैंकों एवं सहकारिता की मूल भावना के हित में पुनर्विचार करते हुए पूर्व की व्यवस्था बहाल की जाए।