गर्म पानी को ब्लॉक करने के लिए एक दीवार
वैज्ञानिकों का पहला सुझाव ‘जैकोबशवन’ से संबंधित है, जो ग्रीनलैंड का सबसे बड़ा और सबसे तेजी से चलता हुआ ग्लेशियर है, वहीं उत्तरी गोलार्ध में किसी भी अन्य ग्लेशियर की तुलना में समुद्री जल स्तर में बढ़त के लिए जिसका सबसे बड़ा योगदान है। जैकोबशवन से पिघली बर्फ ने 20 वीं सदी में समुद्र के जल स्तर में लगभग 4 फीसदी के आस-पास वृद्धि की है। अटलांटिक से गर्म धाराएं ग्लेशियर के आधार को पिघला रही हैं, इसलिए वैज्ञानिकों ने गर्म पानी को उस तक पहुंचने से रोकने के लिए 100 मीटर लंबी दीवार बनाने का प्रस्ताव रखा है। एक कृत्रिम तटबंध बनाने के लिए दीवार को सी-बेड पर बजरी और रेत से ढक दिया जाएगा और कटाव को रोकने के लिए कॉन्क्रीट का जामा पहनाया जाएगा।
दीवार भर बना देने से ग्लेशियर के शीर्ष तक पहुंचने वाली गर्म हवा की समस्या में बेशक मदद नहीं मिलेगी लेकिन बर्फ के पिघलने में कमी तो आएगी ही। दूसरे सुझाव में कहा गया है कि ग्लेशियर समुद्र में घूमते हैं या उनके टुकड़े समुद्र में गिरते हैं, उनसे भारी हिम-चट्टानें बन जाती है। गर्म पानी इन हिम चट्टानों को समतल करता है और वह पतले होते चले जाते हैं और कुछ मामलों में पूरी तरह टूट या पिघल जाते हैं। जिससे समुद्र के स्तर में वृद्धि तेज हो जाती है। पश्चिमी अंटार्कटिका में विशेष रूप से दो हिमनद पाइन द्वीप और थवाइट्स हैं, जो वैज्ञानिकों का रिसर्च का बिंदु हैं। पिघलते हुए यह अगले दो शताब्दियों में समुद्र के स्तर में वृद्धि के सबसे बड़े स्रोत बन जाएंगे। वैज्ञानिकों ने 300 मीटर ऊंचे कृत्रिम द्वीपों का निर्माण करके हिम चट्टानों को थामने या रोकने का प्रस्ताव दिया है।
वैज्ञानिकों के अनुसार जब किसी ग्लेशियर के संचयन क्षेत्र से बर्फ नीचे की ओर खिसकती रहती है तो इससे गर्मी उत्पन्न होती है, यह गर्मी तेजी से बह रही धाराओं में बदलती है, बदले में ग्लेशियर के पिघलने की गति और तेज हो जाती है। अंटार्कटिका में यह धाराएं बहुत उथली हो सकती हैं और वैज्ञानिकों का प्रस्ताव है कि इस गर्म पानी को या तो पम्पिंग से बाहर कर दें या इसके आस-पास ठंडा पानी डाल कर इसे फ्रीज कर दें। इससे ग्लेशियर के पिघलने की दर धीमी हो जाएगी।
हालांकि, एकबारगी देखने में जियो-इंजीनियरिंग वाले यह तमाम प्रस्ताव प्राकृतिक रूप से बनने वाले ग्लेशियरों में छेड़छाड़ वाले और कुछ विचित्र से भी लगते हैं, दुनिया के इन जमे हुए क्षेत्रों में काम करना इंसानों के लिए अविश्वसनीय रूप से कठिन और खतरनाक साबित हो सकता है, वहीं इन परियोजनाओं की महंगी लागत अरबों डॉलर में चली जाएगी।