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जयपुर

गिलहरी जो रहती है 8 महीने शीतनिद्रा में

सर्दी के मौसम में गिलहरी की एक प्रजाति पर हुआ शोधगिलहरी की इस प्रजाति में पाई जाती है तेरह धारियां

जयपुरMar 28, 2020 / 04:09 pm

Suresh Yadav

गिलहरी जो रहती है 8 महीने शीतनिद्रा में

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जयपुर। आपने यह तो सुना ही हो कि ज्यादातर गिलहरियां सर्दी के मौसम के लिए भोजन की व्यवस्था पहले से ही कर लेती है। पेड़ के तने अथवा डालियों पर ये गिलहरियां रहती हैं। यही नहीं यह प्रजााति अपनी सर्दियां अपनी जगह पर ही बिताना पसंद करती हैं।
आज हम आपको बताने जा रहे हैं गिलहरी की एक ऐसी प्रजाति के बारे में जो सर्दियों के लिए भोजन की व्यवस्था करने के बजाए खुद ही शीतनिद्रा (हाइबरनेशन) में चली जाती है। यू.एस. मिडवेस्ट में पाई जाने वाली तेरह धारियों वाली यह गिलहरी सर्दियों के मौसम में लगभग आठ महीने तक शीतनिद्रा में रह सकती है। प्राणि जगत में शीतनिद्रा की यह सबसे लंबी अवधि मानी जा रही है। यही नहीं वैज्ञानिकों ने अब यह भी पता लगा लिया है कि गिलहरी की यह प्रजाति भोजन-पानी के बगैर इतनी लंबी शीतनिद्रा कैसे कर पाती है।
जिस प्रकार भालू सहित अन्य जीव शीतनिद्रा में चले जाते हैं उसी प्रकार हाइबरनेशन के दौरान गिलहरी के दिल की धड़कन, चयापचय प्रक्रिया और शरीर का तापमान बहुत कम हो जाते हैं। इस दौरान गिलहरी अपनी प्यास को दबाए रखती है, जिसका एहसास होने पर वे शीतनिद्रा की अवस्था से जाग सकती हैं। लेकिन वे अपनी प्यास पर काबू कैसे रख पाती हैं?
इस बात का पता लगाने के लिए शोधकर्ताओं ने दर्जनों गिलहरियों के रक्त सीरम को जांचा। सीरम रक्त के तरल अंश को कहते हैं। उन्होंने गिलहरियों को तीन समूहों में बांटा। एक समूह में गिलहरियां सक्रिय अवस्था में थीं, दूसरे समूह की गिलहरियां मृतप्राय शीतनिद्रा की अवस्था थीं, जिसे तंद्रा कहते हैं और तीसरे समूह की गिलहरियां शीतनिद्रा और सक्रियता के बीच की अवस्था में थीं।
सामान्य तौर पर मनुष्यों सहित सभी जानवरों में प्यास का एहसास सीरम गाढ़ा होने पर होता है। येल विश्वविद्यालय की लीडिया हॉफस्टेटर और साथियों द्वारा किए गए इस अध्ययन में शीतनिद्रा अवस्था की गिलहरियों में सीरम कम गाढ़ा पाया गया जिसके उन्हें प्यास का एहसास नहीं हुआ और वे सोती रहीं। यहां तक कि शोधकर्ताओं द्वारा जगाए जाने पर भी इन गिलहरियों ने एक बूंद भी पानी नहीं पिया। लेकिन जब शोधकर्ताओं ने उनके सीरम की सांद्रता बढ़ाई तो उन्होंने पानी पिया।
शोधकर्ताओं की जिज्ञासा यहीं खत्म नहीं हुई। वे जानना चाहते थे कि शीतनिद्रा के दौरान गिलहरियों का सीरम इतना पतला कैसे हो जाता है?
शोध के दौरान उन्होंने अनुमान लगाया कि शीतनिद्रा में जाने के पहले गिलहरियां ढेर सारा पानी पीकर अपने खून को पतला रखती होंगी। लेकिन सर्दियों में गिलहरियों द्वारा शीतनिद्रा अवस्था में जाने की पूर्व-तैयारी के वक्त बनाए गए वीडियो में दिखा कि आश्चर्यजनक रूप से इस दौरान तो गिलहरियों ने सामान्य से भी कम पानी पिया।
जब उनकी रासायनिक जांच की गई तेा पता चला कि वे अपने रक्त में सीरम की सांद्रता पर नियंत्रण सोडियम जैसे इलेक्ट्रोलाइट और ग्लूकोज़ और यूरिया जैसे अन्य रसायनों को हटाकर करती हैं।
इसे वह शरीर में अन्यत्र संभवत: मूत्राशय में एकत्रित करती हैं। यह अध्ययन एक जर्नल में भी प्रकाशित हो चुका है।

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