जयपुर

अभगवान जगन्नाथ को समर्पित है ओड़िशा का गोटीपुआ नृत्य

गोटीपुआ नर्तक खुद को सौभाग्यशाली मानते हैं कि उन्हें भगवान की सेवा के लिए प्रशिक्षित किया जाता है।

जयपुरOct 23, 2019 / 07:10 pm

Kamlesh Sharma

जयपुर। गोटीपुआ नर्तक खुद को सौभाग्यशाली मानते हैं कि उन्हें भगवान की सेवा के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। पुरी में विराजे भगवान जगन्नाथ की सेवा का अवसर हर कोई पाना चाहता है, लेकिन मिलता विरलों को ही है। ऐसे ही विरले माने जाते हैं ओड़िशा के लोक नृत्य गोेटीपुआ के नर्तक। गोटीपुआ लोक नृत्य भगवान जगन्नाथ को ही समर्पित है। उनका मनोरंजन करने और रिझाने के लिए यह नृत्य होता है। हाल ही में जयपुर के जवाहर कला केंद्र में हुए लोकरंग कार्यक्रम में शामिल गोटीपुआ नृत्य का खूब रंग जमा।
गोटीपुआ प्रशिक्षक बसंत कुमार प्रधान ने बताया कि गोटी का मतलब होता है एक तथा पुआ का अर्थ है लड़का, यानी गोटीपुआ का मतलब हुआ एक लड़का। इस डांस को करने वाले हर नर्तक को ’गोटीपुआ’ कहा जाता है। इसी कारण से इस लोक नृत्य का नाम गोटीपुआ पड़ा। प्रधान बताते हैं कि दरअसल, गोटीपुआ भगवान जगन्नाथ, शिव सहित सभी भगवान की सेवा कर सकते हैं। इनके लिए किसी भी मंदिर में प्रवेश निषिद्ध नहीं होता, इसलिए ये जगन्नाथ भगवान की सेवा में लगाए जाते हैं।
नर्तक की वेशभूषा-
गोटीपुआ के लोक नर्तक साड़ी, ब्लाउज, उत्तरी (कंधे से कमर तक का बेल्ट), पंची (कमर पट्टा), कमर के नीचे कूचो और उसके नीचे धोती जैसा पायजामा पहनते हैं। इनके वस्त्र दुल्हन के वेश की तरह चमचमाते हैं। साथ ही, गहनों में ये अपनी बाहों में बाहुटी, कलाई में बाजू ( विशेष तरह का कंगन), गले में माली (नाभि तक लंबा हार) और पैरों में घूंघरू पहनते हैं। इनके पैर के पंजों में आलता लगा होता है। यानी पूर्ण स्त्री रूप।
प्रधान के मुताबिक इस विधा के विकास के लिए पुरी में दशभुजा गोटीपुआ ओड़िशी नृत्य परिषद् काम कर रही है। इसमें फिलहाल 27 गोटीपुआ प्रशिक्षण ले रहे हैं। ये लड़के अपने प्रशिक्षण का खर्चा विभिन्न स्थानों पर प्रदर्शित अपने डांस से होने वाली आय से वहन करते हैं।

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