विभाग का तर्क और हकीकत तर्क : परिवहन विभाग का तर्क है कि सुप्रीम कोर्ट ने एमसी मेहता के मामले में आदेश दिया था। हकीकत : आदेश में प्रदूषण जांच केन्द्रों की गड़बड़ी रोकने पर जोर देते हुए कहा गया कि वाहन मालिक प्रदूषण सम्बन्धी मानकों का पालन नहीं करने का दोषी पाया जाए तो सुधार के लिए उसे ७ दिन का समय दिया जाए। फिर भी पालन नहीं हो तो कार्रवाई की जाए।
विधिवेत्ताओं का तर्क वाहन मालिक को 7 दिन का समय देना आवश्यक है। इसके बाद जुर्माना लगा सकते हैं। खासकर राजधानी में देर से प्रदूषण जांच कराने वालों को जांच केन्द्रों पर जुर्माना भरने को मजबूर किया जा रहा है। इसे परिवहन विभाग के अधिकारी भी जायज ठहरा रहे हैं, जो गलत है।
क्या कहता है कानून कानून की धारा 111 में राज्य सरकार को नियम बनाने का हक दिया है। वह या तो उस विषय पर नियम बना सकती है जिस पर केन्द्र सरकार ने धारा 110 (1) के तहत प्रावधान नहीं किया है। केन्द्र सरकार ने वायु प्रदूषण को लेकर मानक तय कर रखे हैं। ऐसे में राज्य सरकार के पास वाहनों की नियमित जांच के लिए प्राधिकारी अधिकृत करने और जांच के लिए फीस तय करने का अधिकार ही है।
यह है प्रावधान ध्वनि व वायु प्रदूषण रोकने के लिए पहली बार अपराध पर 1000 रुपए तक जुर्माना लिया जा सकता है। दूसरी बार २ हजार रुपए तक हो सकता है। परिवहन विभाग ने 50 सीसी इंजन वाले दोपहिया वाहनों के लिए 100 रुपए, इससे ऊपर के लिए 250 रुपए तय कर रखा है। तिपहिया वाहनों के लिए 500 रुपए, दोपहिया-तिपहिया को छोड़कर अन्य वाहनों के लिए 1000 रुपए तय किया हुआ है।
राजस्थान हाईकोर्ट के पूर्व न्यायधीश शिवकुमार शर्मा ने कहा की मनमानी न हो बल्कि लोगों को जानकारी दी जाए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश को भी मनमाने तरीके से लागू नहीं किया जाए। डीटीओ रवीन्द्र जोशी ने बताया की मोटर वाहन अधिनियम की धारा 190 (2) में समय पर प्रदूषण जांच नहीं कराने पर पेनल्टी वसूली जा रही है। बिना प्रदूषण जांच प्रमाण पत्र वाहन चलाने पर पेनल्टी ली जा सकती है।