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जयपुर

बुजुर्ग कारीगरों को मिलेगी चार हजार की मासिक वित्तीय सहायता: डॉ. बीडी कल्ला

‘हैंडलूम क्राफ्ट एंड आर्ट’ विषय पर लाइव टॉक का हुआ आयोजन
हथकरघा परंपरा को संरक्षित करने की जरूरत पर दिया जोर

जयपुरAug 08, 2020 / 06:52 pm

SAVITA VYAS

बुजुर्ग कारीगरों को मिलेगी चार हजार की मासिक वित्तीय सहायता: डॉ. बीडी कल्ला

बुजुर्ग कारीगरों को मिलेगी चार हजार की मासिक वित्तीय सहायता: डॉ. बीडी कल्ला

जयपुर। ‘भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने कहा था कि कृषि एक घाटे का सौदा है और किसान सिर्फ खेती करके कभी आगे नहीं बढ़ सकता। यही कारण है कि गांधी ने खादी ग्राम उद्योग, कुटीर उद्योग और हथकरघा उद्योग की शुरुआत की। हैंडलूम उद्योग कई लोगों को रोजगार देता है और अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है।’ यह बात कला एवं संस्कृति मंत्री डॉ. बीडी कल्ला ने नेशनल हैंडलूम डे पर ‘हैंडलूम क्राफ्ट एंड आर्ट ‘ विषय पर आयोजित लाइव टॉक में कहीं। इस लाइव टॉक में टेक्सटाइल स्कॉलर रीटा कपूर चिश्ती भी शामिल हुईं, जिन्होंने मुग्धा सिन्हा के साथ चर्चा की। कार्यक्रम का आयोजन कला एवं संस्कृति विभाग की ओर से जवाहर कला केंद्र और आईएएस लिटरेरी सोसाइटी के सहयोग से किया गया। कार्यक्रम में मंत्री कल्ला ने कहा कि राजस्थान में सांगानेरी, बगरू और अजरक प्रिंट मुख्य रूप से मजबूत रहे हैं। राज्य के कई कारीगर पुरस्कृत हुए हैं और उनके असाधारण काम के लिए उन्हें पहचान मिली है। उन्होंने घोषणा की कि 70 वर्ष से अधिक आयु के कारीगर 4 हजार रुपए की नियमित मासिक वित्तीय सहायता प्राप्त करने के लिए कला एवं संस्कृति विभाग राजस्थान सरकार के माध्यम से कला एवं संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार को अपना आवेदन भेज सकते हैं।
कारीगरों को नींव करनी होगी मजबूत

इस अवसर पर रीटा कपूर चिश्ती ने कहा कि हैंडलूम इंडस्ट्री के कारीगरों को सबसे पहले अपनी नींव मजबूत करनी चाहिए। तभी वे ऐसे टॉप क्लास प्रोडक्ट बना पायेंगे, जो दुनिया भर में जाना जाएगा। उन्होंने आगे कहा कि किस तरह का हैंडवर्क टॉप श्रेणी का होता है, इसका भी बेंचमार्क होना चाहिए ताकि कारीगरों को उस क्वालिटी के प्रोडक्ट बनाने के लिए प्रोत्सहित और सहयोग दिया जा सके। हथकरघा देश की एक महान परंपरा है, जिसमें गिरावट देखी जा रही है। इसके कारीगरों को पर्याप्त सम्मान और पहचान नहीं दी जा रही है। इस उद्योग में कमाई भी बहुत कम है। यही कारण है कि यह पीढ़ीगत शिल्प समाप्त हो रहा है। यदि कारीगरों की अच्छी कमाई होगी तो उनके बच्चे भी उनके नक्शेकदम पर चलेंगे और इस कला को जीवित रखेंगे।

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