कटारिया ने कहा कि 2008 से गुर्जरों को आरक्षण देने का प्रयास चल रहा है। पक्ष—विपक्ष की सहमति रही, लेकिन परिणाम यही रहा कि हर बार बिल को कोर्ट ने खारिज कर दिया। इंदिरा साहनी के केस के चलते 49 प्रतिशत से ज्यादा आरक्षण का प्रावधान नहीं होने से यह बिल हर बार खारिज हुआ। दूसरी बार हमने पिछडा वर्ग आयोग बनाकर आरक्षण दिया। एक साल तक प्रदेश में पांच प्रतिशत आरक्षण जारी रहा, लेकिन कोर्ट में मामला चला गया तो उसे फिर से खारिज कर दिया गया। हम मात्र एक प्रतिशत आरक्षण दे पाए। हम चाहते हैं कि आरक्षण मिले, लेकिन इस संशोधन विधेयक से कोई हल नहीं निकलेगा। कानूनी बाध्यता रहेगी। संविधान संशोधन के बिना गुर्जर समेत पांच जातियों को आरक्षण नहीं मिलेगा। आप सिर्फ ठंडे छींटे देना चाहते हो तो अलग बात है।
सरकार ने सिर्फ खानापूर्ति की उप नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड ने कहा कि यह पहला मौका है जब बिल सदन में आने के बाद सर्कुलेट हुआ। ऐसी क्या जरूरत थी कि सब आनन—फानन में किया। हमसे राय करते। बिल लाने में आपकी कोई गंभीरता नहीं है। जब किरोडी सिंह बैंसला ने आंदोलन की घोषणा की तब क्यों उनसे बात नहीं की गई। गुर्जर आरक्षण के पक्षधर हम भी, लेकिन गुर्जर आंदोलन के चलते करोडों रुपए का नुकसान हुआ, सवा लाख से ज्यादा यात्री कहीं ना कहीं अटके हुए हैं। बसें व ट्रेंनें बंद हैं। परीक्षाएं रदृ करनी पडी हैं। यह सारी बातें बता रही है कि सरकार ने सिर्फ खानापूर्ति की। जब यह पता है कि न्यायिक समीक्षा हो सकती है तो कानूनी राय क्यों नहीं ली गई। आपके पास क्या रोडमेप है। आप सदन के आखिरी दिन यह बिल लेकर आए, आप पहले दिन लेकर आते। विधि वेताओं से चर्चा करते। ये सरकार कहती कुछ है और करती कुछ और है।
मोदी आएंगे, गुर्जरों को आरक्षण दिलवाएंगे विधायक वासुदेव देवनानी ने कहा कि यह मुदृा संवेदनशील है। सबके मन में पीडा है, लेकिन गुर्जर पटरियां पर बैठा क्यों, क्योंकि सरकार ने गंभीरता ही नहीं दिखाई। तीन मंत्रियों की कमेटी बनाई, लेकिन एक भी मंत्री गुर्जर समाज से नहीं था। उन्होंने चुटकी लेते हुए कहा कि पहले तय करो कि केन्द में मोदी सरकार लाएंगे, फिर गुर्जरों को आरक्षण दिलवाएंगे।