अब्दुल कलाम से मिलना, खास पल जब मुझे एपीजे अब्दुल कलाम आजाद ने राष्ट्रपति पुरस्कार दिया, उस समय पुरस्कार लेने से ज्यादा मुझे कलाम साहब के शब्द ‘प्रणाम आचार्य जी’ ने गौरवान्वित किया। उनकी सफलताओं और संघर्षपूर्ण जीवन ने मुझे हमेशा प्रेरित किया है। उन्होंने राष्ट्रहित में अपना पूरा जीवन दिया था।
परिवार का मिला पूरा सपोर्ट मुझे परिवार का पूरा सपोर्ट मिला है। बेटे ने मेरी हेल्थ की वजह एसडीएम के पद पर रहने के बावजूद वीआरएस लिया है। मेरी वाइफ ने पूरा घर संभाल रखा था, तभी मैं अपना सफल कॅरियर बना पाया हूं। मेरी वाइफ ने समाज की कुरीतियों को तोड़ा था और पूरे परिवार को हमेशा खुश रखा।
लोगों ने बनाया मजाक, लेकिन हारा नहीं जीवन में कई बार चुनौतियां सामने आती हैं। जब मैंने अपनी पहचान बनाना शुरू किया, तब लोगों ने मेरा मजाक बनाया। फिल्म ‘भूल मत जाना’ के लिए जब मैं गीत लिख रहा था, तो लोगों का कहना था कि ‘ये तो संस्कृत के पंडित हैं, ये क्या गीत लिखेंगे। लेकिन जब गीत ‘गम-ए-दिल किस से कहूं, कोई भी गमख्वार नहीं’ जो मुकेश ने गाया था, उसे सुनकर आलोचकों को हैरानी हुई। इस फिल्म के गीत उर्दू में लिखे थे, इसके बाद तो गीतों का सिलसिला कभी थमा नहीं। मैंने ‘भूल न जाना’ (1971), मेहंदी रंग लाएगी (1981), बवंडर (2000) फिल्मों के लिए हिन्दी और उर्दू में गीत लिखे। इसके अलावा राजस्थान में कई लाइट एंड साउंड कार्यक्रम में भी मेरे लिखे गीत सुनाए जाते हैं। आज लगता है कि कुछ लोगों को जो मजाक लगा था, उसे मैंने गलत साबित किया।
बच्चों में बढ़े संस्कृत का रुझान मेरा जन्म जैसलमेर में हुआ था, पिताजी का ट्रांसफर होता रहता था। इसके कारण मैं भी जयपुर आ गया और फिर यहां का ही हो गया। राजस्थान विश्वविद्यालय से संस्कृत की पढ़ाई की और उसके बाद यहां संस्कृत विभाग का अध्यक्ष और प्रोफे सर रहा। आज संस्कृत के प्रति बच्चों का रुझान बेहद कम होता जा रहा है, जिसे बढ़ाने के लिए प्रयास करने होंगे। खासकर नई जनरेशन संस्कृत से दूर होती जा रही है। मैंने हाल ही बच्चों के लिए हिन्दी ‘अबन बबुआ’ और विशेषकर संस्कृत ‘कलकली’ में कविता संग्रह निकाला है, जिसका विमोचन जल्द ही किया जाएगा। मैं विभिन्न भाषाओं में 14 किताबें लिख चुका हूं और लगभग इतनी ही किताबों पर काम चल रहा है। मेरा लिखा राजस्थान विश्वविद्यालय का कुलगीत ‘गुरुकु ल पावन, कला निकेतन’, बच्चे बोलते हैं, तो अच्छा लगता है।
हरिराम आचार्य ने कहा कि जब एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा ‘प्रणाम आचार्य जी’ तो लगा, जैसे संस्कृत के प्रति मेरी सेवा को सम्मान मिल गया है।