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जयपुर

भारतीय उपमहाद्वीप में चरमपंथ के खतरे

-श्रीलंका में हमले से फिर सामने आया आतंक का चेहरा

जयपुरMay 07, 2019 / 08:03 pm

pushpesh

-श्रीलंका में हमले से फिर सामने आया आतंक का चेहरा

भारतीय उपमहाद्वीप में चरमपंथ के खतरे

जयपुर.

श्रीलंका अभी युद्ध और आतंकवाद की कड़वी यादें भूला नहीं है। एक दशक पहले कोलंबो में सिंहली प्रभुत्व वाली सरकार और एलटीटीई (लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम) के बीच दशकों पुराना गृहयुद्ध हजारों नागरिकों की मौत के बाद खत्म हुआ। ईस्टर की सुबह जब बम धमाके में सैकड़ों ईसाई और होटल में ठहरे सैलानी मारे गए तो लगा यह भी शांति वाला देश नहीं है। ये साउथ एशिया में अकेला देश नहीं है, जिसने आतंकवाद भोगा। भारत ने पिछले एक दशक में देखा, धार्मिक और जातीय पहचान गहराती जा रही है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान में चरमपंथ और आतंकवाद का कहर जारी है, जिससे धार्मिक अल्पसंख्यक हिंसा की चपेट में हैं।
बौद्ध बहुल म्यांमार में लोकतांत्रिककरण एक मिश्रित नतीजे लाने वाला साबित हुआ है। क्योंकि नई सरकार ने अपने मुस्लिम रोहिंग्या अल्पसंख्यकों के उत्पीडऩ और निष्कासन पर ध्यान दे रही है। कश्मीर में एक दशक की अपेक्षाकृत शांति के बाद फिर से हिंसा बढ़ गई है और अलगाववादियों का आंदोलन भी फिर उठ खड़ा हुआ है।
सरकार ने पूर्वात्तर में बांग्लादेशी प्रवासियों को खदेडऩे के लिए एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर) की योजना तैयार की है। भारतीय उपमहाद्वीप में हर कोई धर्मिक और जातीय आतंकवाद बढ़ाने के लिए एक-दूसरे को जिम्मेदार ठहरा रहा है। अफगानिस्तान ने पाकिस्तान को दोषी ठहराया, पाकिस्तान ने भारत पर आरोप लगाया। भारत उपमहाद्वीप को विभाजित करने के लिए अंग्रेजों को दोषी ठहराता आ रहा है। लेकिन सच्चाई यह है कि औपनिवेशकाल के बाद हमारे सभी राज्य एक जरूरी सम्मान पाने में विफल रहे हैं। उन्होंने कभी भी आधुनिक, समावेशी और सर्वांगीण राष्ट्रीय पहचान नहीं बनाई।
खुद को राष्ट्रवादी बताने वाले लिट्टे ने भी उन्माद फैलाया था
श्रीलंका में लिट्टे ने धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवादी होने का दावा किया, लेकिन लंबे युद्ध के दौरान उसने कई बौद्ध मंदिरों पर हमला किया और हजारों मुसलमानों को मार डाला। इस बीच श्रीलंकाई राजनीति बौद्ध और सिंहली पहचान और सैन्यकरण पर केंद्रित हो गई और मुस्लिम विरोधी दंगों का नतीजा अब भयानक रूप में सामने आया है। आप श्रीलंका की तरह उचित सामंजस्य बनाए बिना अतीत के बल पर आगे नहीं बढ़ सकते।

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