हाई रिस्क थे मरीज —
अस्पताल के चिकित्सकों के अनुसार मरीज की 10 साल पहले बायपास सर्जरी हो चुकी थी। अब मरीज को फिर से छाती में दर्द, सांस फूलने की शिकायत होने लगी थी। जांच में सामने आया कि मरीज की महाधमनी (एओर्टिक वॉल्व) सिकुड़ गई है। इस वॉल्व को रिप्लेस करने के लिए आमतौर पर ओपन चेस्ट सर्जरी ही करवाई जाती है। लेकिन मरीज दोबारा ओपन चेस्ट सर्जरी से गुजरने में सक्षम नहीं थे और उन्हें हाइपरटेंशन व कमजोर फेफड़ों की भी समस्या थी। ऐसे में उनकी वापस ओपन चेस्ट सर्जरी होने पर जान को खतरा था इसीलिए उनका, टावर तकनीक द्वारा इलाज करने का निर्णय लिया गया। करीब 50 मिनट के प्रोसीजर के दौरान मरीज को बिना बेहोश किये पैर की धमनी के रास्ते, टावर तकनीक के जरिये एओर्टिक वॉल्व बदला गया।
अस्पताल के चिकित्सकों के अनुसार मरीज की 10 साल पहले बायपास सर्जरी हो चुकी थी। अब मरीज को फिर से छाती में दर्द, सांस फूलने की शिकायत होने लगी थी। जांच में सामने आया कि मरीज की महाधमनी (एओर्टिक वॉल्व) सिकुड़ गई है। इस वॉल्व को रिप्लेस करने के लिए आमतौर पर ओपन चेस्ट सर्जरी ही करवाई जाती है। लेकिन मरीज दोबारा ओपन चेस्ट सर्जरी से गुजरने में सक्षम नहीं थे और उन्हें हाइपरटेंशन व कमजोर फेफड़ों की भी समस्या थी। ऐसे में उनकी वापस ओपन चेस्ट सर्जरी होने पर जान को खतरा था इसीलिए उनका, टावर तकनीक द्वारा इलाज करने का निर्णय लिया गया। करीब 50 मिनट के प्रोसीजर के दौरान मरीज को बिना बेहोश किये पैर की धमनी के रास्ते, टावर तकनीक के जरिये एओर्टिक वॉल्व बदला गया।
सामान्य जीवन जी रहा मरीज, तेजी से रिकवरी —
टावर तकनीक से वॉल्व बदलने के बाद मरीज को एक दिन आईसीयू में रखा गया और दो दिन बाद उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। मरीज की तेजी से रिकवरी हुई है और अब बिल्कुल स्वस्थ है और आराम से चल-फिर पा रहे हैं। उन्होंने बताया कि जिन हृदय रोग के मरीजों को ओपन हार्ट सर्जरी नहीं की जा सकती है उनके लिए टावर तकनीक वरदान है। इस तकनीक के जरिये बिना किसी चीर-फाड़ के वॉल्व रिप्लेसमेंट किया जा सकता है और इसके काफी बेहतर परिणाम मिलते है। मरीज की 10 साल पहले बायपास सर्जरी हो चुकी थी। अब मरीज को फिर से छाती में दर्द, सांस फूलने की शिकायत होने लगी थी। जांच में सामने आया कि मरीज की महाधमनी (एओर्टिक वॉल्व) सिकुड़ गई है। इस वॉल्व को रिप्लेस करने के लिए आमतौर पर ओपन चेस्ट सर्जरी ही करवाई जाती है। लेकिन मरीज दोबारा ओपन चेस्ट सर्जरी से गुजरने में सक्षम नहीं थे और उन्हें हाइपरटेंशन व कमजोर फेफड़ों की भी समस्या थी। ऐसे में उनकी वापस ओपन चेस्ट सर्जरी होने पर जान को खतरा था इसीलिए उनका, टावर तकनीक द्वारा इलाज करने का निर्णय लिया गया।
टावर तकनीक से वॉल्व बदलने के बाद मरीज को एक दिन आईसीयू में रखा गया और दो दिन बाद उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। मरीज की तेजी से रिकवरी हुई है और अब बिल्कुल स्वस्थ है और आराम से चल-फिर पा रहे हैं। उन्होंने बताया कि जिन हृदय रोग के मरीजों को ओपन हार्ट सर्जरी नहीं की जा सकती है उनके लिए टावर तकनीक वरदान है। इस तकनीक के जरिये बिना किसी चीर-फाड़ के वॉल्व रिप्लेसमेंट किया जा सकता है और इसके काफी बेहतर परिणाम मिलते है। मरीज की 10 साल पहले बायपास सर्जरी हो चुकी थी। अब मरीज को फिर से छाती में दर्द, सांस फूलने की शिकायत होने लगी थी। जांच में सामने आया कि मरीज की महाधमनी (एओर्टिक वॉल्व) सिकुड़ गई है। इस वॉल्व को रिप्लेस करने के लिए आमतौर पर ओपन चेस्ट सर्जरी ही करवाई जाती है। लेकिन मरीज दोबारा ओपन चेस्ट सर्जरी से गुजरने में सक्षम नहीं थे और उन्हें हाइपरटेंशन व कमजोर फेफड़ों की भी समस्या थी। ऐसे में उनकी वापस ओपन चेस्ट सर्जरी होने पर जान को खतरा था इसीलिए उनका, टावर तकनीक द्वारा इलाज करने का निर्णय लिया गया।
सामान्य जीवन जी रहा मरीज, तेजी से रिकवरी — टावर तकनीक से वॉल्व बदलने के बाद मरीज को एक दिन आईसीयू में रखा गया और दो दिन बाद उन्हें अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया। मरीज की तेजी से रिकवरी हुई है और अब बिल्कुल स्वस्थ है और आराम से चल-फिर पा रहे हैं। उन्होंने बताया कि जिन हृदय रोग के मरीजों को ओपन हार्ट सर्जरी नहीं की जा सकती है उनके लिए टावर तकनीक वरदान है। इस तकनीक के जरिये बिना किसी चीर-फाड़ के वॉल्व रिप्लेसमेंट किया जा सकता है और इसके काफी बेहतर परिणाम मिलते है।