लुहार परिवारों में बेटियों के बाहर निकलने पर सख्त पाबंदी है, लेकिन इसके बावजूद इसने पुरानी रीतियों को तोड़ते हुए स्कूल में प्रवेश लिया और चार साल पहले अपनी पंसद से हॉकी को अपना खेल चुना। हॉकी खरीदने के लिए उसके पास पैसे नहीं थे और खेल की तैयारी के लिए कोई अच्छा मैदान भी नहीं है। लेकिन खेल का जज्बा इतना की उबड़—खाबड़ जमीन व खेतों में अभ्यास किया । अभी तक हॉकी में चार बार स्टेट प्लेयर व दो बार नेशनल प्लेयर रहकर ना केवल गाडिया लुहार बल्कि अलवर जिले का भी मान बढ़ाया है। खुदनपुरी स्थित राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय की बालिका की मदद के लिए इस स्कूल के शारीरिक शिक्षक बिजेंद्र सिंह ने पहल की और उसे हॉकी उपलब्ध करवाई। साथ ही खेलों में आगे आने का हौसला भी दिया। अंजलि के पिता सुरजन ने बताया कि बेटी की इस उपलब्धि पर वो बहुत खुश हैं। उसको देखकर डेरे की बहुत सी बेटियां अब स्कूल जाने लगी है।
राजस्थान टीम की बनी कप्तान
इसी साल 10 जनवरी से 14 जनवरी तक हरियाणा के हिसार में हुए 64वीं राष्ट्रीय स्तरीय हॉकी छात्रा प्रतियोगिता की कप्तानी का मौका भी अंजलि को मिला और राजस्थान के ध्वजवाहक के रूप में शामिल हुई। मां ने बताया कि पांच बहन भाईयों में सबसे तेज है। अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए पैसे नहीं है, इसलिए सरकारी स्कूल में पढ़ा रहे हैं। वहीं हरियाणा लौहार संघ की ओर से उसका सम्मान भी किया गया, लेकिन दुख इस बात का है कि गाडिया लुहारों के लिए मिसाल बनी इस बालिका को आज तक अलवर में पहचान नहीं मिल पाई है।
इसी साल 10 जनवरी से 14 जनवरी तक हरियाणा के हिसार में हुए 64वीं राष्ट्रीय स्तरीय हॉकी छात्रा प्रतियोगिता की कप्तानी का मौका भी अंजलि को मिला और राजस्थान के ध्वजवाहक के रूप में शामिल हुई। मां ने बताया कि पांच बहन भाईयों में सबसे तेज है। अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए पैसे नहीं है, इसलिए सरकारी स्कूल में पढ़ा रहे हैं। वहीं हरियाणा लौहार संघ की ओर से उसका सम्मान भी किया गया, लेकिन दुख इस बात का है कि गाडिया लुहारों के लिए मिसाल बनी इस बालिका को आज तक अलवर में पहचान नहीं मिल पाई है।