मुगल काल की कुछ तस्वीरों में इस काल की होली के किस्सों का चित्रण देखते ही बनता है और उत्सुकता भी जगाता हैै। इनमें मशहूर है अकबर का जोधाबाई के साथ होली खेलना, जो उस समाज की कई कहानियों से हमें रूबरू कराता है। अकबर के अलावा जहाँगीर का नूरजहाँ के साथ होली खेलने का ज़िक्र भी इतिहास में दर्ज है। रंग खेलने की इस परिपाटी का मुगलिया अंदाज नजर आया शाहजहाँ के ज़माने में…. इतिहास गवाह है शाहजहाँ के समय में होली को ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पाशी यानी रंगों की बौछार कहा जाता था. अंतिम मुगल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र तो होली के मुरीद थे। जफर के बारे में कहा जाता है कि उनके दरबार के मंत्री होली के दिन उन्हें रंग लगाने के लिए विशेष रूप से जाया करते थे। उनके लिखे होली के फाग आज भी बड़े चाव से गाए जाते हैं।
”क्यों मो पे मारी रंग की पिचकारी, देखो कुँअर जी दूंगी गारी”।।। ये फाग आज भी चंग बजाते लोगों के मुंह से सुना जा सकता है।