थानाधिकारी संजय चौहान बोले, एक पिता के यह शब्द सुन…समझ में नहीं आया उन्हें क्या जवाब दूं। सोशल मीडिया के जरिए पिता को घटना का पता चल गया था। लेकिन पिता का फोन आने के बाद हमें पता चला कि जेडीए चौराहा पर दुर्घटना में मरने वाले अलग-अलग व्यक्ति नहीं, बल्कि दोनों सगे भाई हैं। थानाधिकारी ने बताया कि चालक की लापरवाही के चलते ना जाने कितने घर उजड़ जाते हैं। अब तो यह स्थिति है…रात्रि में कभी घर पर होते हैं…और किसी सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो जाने की सूचना आती है…तभी पत्नी और बच्चे दस सवाल पूछते हैं…।
कौन है…, कहां रहता है…उन्हें भी क्या बताएं। इतना जागरूक करने के बाद भी वाहन चालक लापरवाही से वाहन चलाते हैं। राजस्थान पत्रिका ने सड़क दुर्घटनाओं में मृतकों के परिजनों को दिल पर पत्थर रख पुलिस कैसे देती है सूचना। इसकी पड़ताल की तो पुलिस का यह मानवीय चेहरा भी सामने आया।
महिला फोन रिसीव करे तो जेंट्स से बात कराएं
12 वर्ष में करीब 300 मृतकों के परिवारों को झूठ बोलकर अस्पताल बुलाने वाले हैड कांस्टेबल पूरण बताते हैं कि कैसे वो परिजनों से संपर्क करते हैं। उनके अनुसार, मृतक के परिवार को पता चलते ही सबसे पहले रिश्ता पूछते हैं, मृतक का संबंध क्या है, फिर महिला से संपर्क होता है तो पुरुष से बात कराने के लिए कहते हैं। पुरुष को भी सीधे नहीं बोलते, इतना कहते हैं कि आप अस्पताल पहुंचे। आपके परिचित सड़क हादसे में घायल हो गए हैं। आराम से आना अभी अस्पताल में भर्ती कराया है। जल्दबाजी नहीं करना। कई बार मृतक के संपर्क होने वाले परिजन से उसे कोई बीमारी (हार्टअटैक) तो नहीं है। यह भी पूछते हैं, रिश्तेदार होने पर उन्हें जरूर हकीकत बता देते हैं। कांस्टेबल संजय बोले, कई बार अस्पताल बुलाने के बाद भी मृतक के परिजनों की स्थिति देख उन्हें सही सूचना सीधे बताने की हिम्मत नहीं होती। अस्पताल में भर्ती होना कहकर ढांढ़स बंधाते हैं। लेकिन बाद में अस्पताल में उन्हें स्वत: अपने के चले जाने की जानकारी लगती है।
घर का कमाने चला गया, शव ले जाने का पैसे नहीं
पूरण ने बताया कि मध्यप्रदेश के गुना के रहने वाले एक व्यक्ति की यहां सड़क दुर्घटना का शिकार हो गया। पहचान कर उसके परिजनों से संपर्क साधा, लेकिन परिजनों के पास जयपुर आने तक का किराया नहीं था। एक सिपाही को वहां भेजकर परिजनों को जयपुर लाया गया। यहां रैन बसेरे में उन्हें ठहराया। लेकिन अंतिम संस्कार और शव ले जाने के पैसे भी नहीं थे। मृतक ही उस परिवार का जीवन यापन करने के लिए यहां मजदूरी कर खर्चा उठा रहा था।
बाद में यहां आदर्श नगर शमशान में उसकी अंत्येष्टि करवाई और कुछ संस्थाओं के जरिए मृतक के परिजनों को आर्थिक मदद दिलवाकर वापस उनके घर भेजा। लेकिन एक वाहन चालक की लापरवाही ने उस पूरे परिवार की रोटी पर संकट डाल दिया। एेसे भी कई मामले सामने आते हैं, तब मन पसीज जाता है। अंत में पुलिसकर्मियों ने कहा कि क्या करें, हमारी भी ड्यूटी है। अंत परिजनों को हकीकत बताते हैं।