जब मरीज के परिजन उसे घर ले जाने के लिए हॉस्टिपल आते है तो वो अपने साथ मरीज का पहचान पत्र लेकर आते है। फिर उन्हें मरीज के पहचान पत्र की प्रतिलिपि को जमा करते है। हॉस्पिटल का ऑफिसयल वर्क पूरा करने के बाद मरीज को परिजन के साथ रवाना कर देते हैं।
राजकीय मनोचिकित्सालय चिकित्सकों का कहना है कि मरीजों को घर पहुचानें में सबसे बड़ी समस्या परिजनों को यकीन दिलाना होता है कि मरीज ठीक हो चुका है। उसके लिए संस्था और मनोचिकित्सालय साथ में मिलकर मरीज के परिजनों की कॉउंसिलिंग करते है। फिर परिजन मरीज को अपने साथ धर लेकर के जाते है।
लवारिश मरीज के मामले में रोगी की फोटो पुलिस को भेजी जाती है। पुलिस गांव, शहर आदि की जानकारी होते ही अस्पताल व संस्था की टीम मरीज को घर तक पहुंचाकर आती है। बरसों से दूर रहे रोगी के ठीक होते ही घर पहुंचने पर परिजनों की खुशी का ठिकाना नहीं होता।
40 मरीजों को पहुचां उनके घर
08 मरीज को परिजन ले गए
32 मरीज को मनोचिकित्सालय ने पहुंचाया घर
1 सप्ताह लगता है परिजनों द्वारा मरीज को ले जाने म
2014 से 2017 के आकड़े मनोचिकि त्सालय के अनुसार
कुछ लोग परिवारजन को भर्ती के लिए लेकर के आते हैं। मरीज के ठीक हो जाने पर उपरांत उसे ले जाने में आनाकानी करते हैं। जिस वजह से अस्पताल में ठीक होने वाले मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसे में ठीक हुए मरीजों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे मनोचिकित्सालय और संस्था मिलकर ठीक मरीजों को अपनों के पास पहुंचा रहे है, ताकि वे अपना जीवन परिजनों के साथ बीता सकें। डॉ.आर.के सोलंकी, मनोचिकित्सालय, अधीक्षक