कोरोना की संभावित तीसरी लहर से भी लोग डरे हुए हैं और बच्चों को घर के बाहर नहीं निकाल रहे। वहीं दूसरी वजह बच्चों के लिए टीका ना होना भी है। बच्चों के लिए होम आइसोलेशन आसान नहीं है। परिवार का साथ भले ही मिले, लेकिन चारदीवारी के भीतर एक समय बाद लोगों को घुटन होती है। इससे उन्हें बाहर लाने के लिए उनसे बात करना जरूरी है, उनकी काउंसलिंग जरूरी है। यह कहना है साइकोलॉजिस्ट डॉ. मनीषा गौड़ का। मनीषा गौड़ कहती हैं कि ऐसे अवसाद के समय में हैल्पलाइन की बेहद जरूरत थी, वो जारी की है। उसके बाद उस पर बच्चों से लेकर युवा, प्रौढ़, बुजुर्गों तक के कॉल आ रहे हैं। बस जरूरत उनकी परेशानियों को सुनने की है। मैं बच्चों को और सभी को ध्यान, योग की सलाह देती हूं। इससे ब्रीदिंग पावर तो बढ़ती ही है, तनाव भी दूर रखता है। वहीं म्यूजिक सुनना, क्राफट बनाना या जो भी शौक हैं, उन्हें निखारने में समय लगाएंगे तो आइसोलेशन भी आसानी से पूरा होगा।
इस समय में कोरोना को लेकर गलत जानकारियों के कारण लोग डरे हुए हैं। जिंदगी को लेकर होपलेस हो रहे हैं। एक अनचाहा डर उन्हें सता रहा है। यह कहना है सीनियर स्पेशलिस्ट, सायकायट्रिक डॉ. राजेश शर्मा का। वे कहते हैं कि कोरोना फोबिया, फीयर, एंजायटी, इन्सोमनिया जैसी शिकायतें हैल्पलाइन पर कर रहे हैं। डर के मारे लोग बार-बार कोरोना टेस्ट करवाने लगे हैं। हम लोगों को यही कहते हैं कि सही जानकारी रखने का प्रयास करें। कोरोना का मतलब मौत माना जा रहा है, जबकि यह सकारात्मक व्यवहार के साथ, सही उपचार से ठीक हो जाता है। उपचार पर विश्वास करते हुए लाइफ स्टाइल को नॉर्मल करें। मनो चिकित्सा केंद्र की हैल्पलाइन ‘मन संवाद‘ पर कोरोना के अवसाद को लेकर लगातार कॉल आते हैं। हम उन्हें इससे बचने के उपाय बता रहे हैं।