मुफ्ती ने बताया कि कुरआन पाक का हक यह है कि उसकी तिलावत की जाए, उसको समझा जाए, उस पर अमल किया जाए, उसके पैगाम को तमाम इंसानियत तक पहुंचाया जाए। कितनी हैरत और तआज्जुब की बात है कि इंसान दुनिया की हर किताब को ट्रांसलेट के जरिए समझ ले और सृष्टि के रचयिता का कलाम समझना मुमकिन ना हो। ईमान वाला हश्र के मैदान में अपने पालनहार के सामने खड़ा होगा जबकि उसने दुनिया की पूरी जिंदगी में उसकी भेजी हुई किताब को एक बार भी ना समझा होगा। कुरआन को समझने से तमाम इंसानियत के साथ भलाई करने, सबको एक मालिक का बंदा समझने की सलाहियत पैदा होती है। खत्म कुरान की मजलिस कि दुआ मकबूल (कुबूल) होती है।