पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों का मानना है कि जानकारी के अभाव, लालच, कम जोखिम और अधिक पैसे कमाने के मौके के चलते वन्य जीव अपराधों को बढ़ावा मिल रहा है। इस मामले में भारत बड़ा हॉटस्पॉट बन कर उभरा रहा है। बाघ और तेंदुए की खाल, उनकी हड्डी और शरीर के अन्य अंग, गैंडे के सींग, हाथी दांत, कछुए, समुद्री घोड़े, सांप का विष, नेवले के बाल, सांप की खाल, कस्तूरी मृग की कस्तूरी, भालू का पित्त और पिंजरे में रखे जाने वाले पक्षी जैसे पेराफीट ,मैना और मुनिया की तस्करी बढ़ी है।
वर्ष 2018 में ट्रैफिक इंडिया द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2009 से 2017 तक भारत में कम से कम 5772 पैंगोलिन को अवैध व्यापार के रास्ते पकड़ा गया। पेटागोनियन समुद्री घोड़ा उन तीन समुद्री घोड़ो में से एक है जिसे उसके औषधीय गुणों के कारण तस्करी का शिकार बनाया जा रहा है। भारतीय स्टार कछुए की तस्करी विश्व स्तर पर अब सबसे अधिक की जाती है। साथ ही पालतू पशु के तौर पर इसकी सबसे अधिक मांग है।
भारत में प्रमुख रूप से हाथी, गैंडे, तेंदुआ, नेवला, कछुए, टाइगर, समुद्री घोड़ा, कोरल आदि का अवैध रूप से शिकार हो रहा है। शिकारी जहां शेर, टाइगर या तेंदुए का शिकार उनकी हड्डियों, नाखून और खाल के लिए करते हैं। वहीं हाथी का उसके दांत और गैंडे का शिकार प्रमुख रूप से उसकी सींग के लिए करते हैं। अकेले गैंडे की एक किलो सींग की कीमत अंतरराष्ट्रीय बाजार में 70 हजार डॉलर तक है।
वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो ने देश भर में ऐसे 1900 से ज्यादा शिकारियों की पहचान की है, जो वन्यजीवों के शिकार में लिप्त हैं। देश में सबसे ज्यादा गैंडे के 239 शिकारी हैं। इसके अलावा 186 पैंगोलिन के शिकारी, 185 टाइगर के शिकारी, 170 तेंदुए के शिकारी, 134 कछुए और 37 हिरन के शिकारी हैं। जो कि हर पल शिकार करने के लिए घात लगाए बैठे रहते हैं। चार साल में वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो ने 1800 से ज्यादा जब्तियां की हैं।
इनके अंगों से जो दवा बनती है उसकी कीमत काफी अधिक होती हैं जो इनके व्यापार को और अधिक बढ़ावा देती है।