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कोरोना का असर: 80 साल में पहली बार नहीं हुआ पशु मेले का आयोजन

कोरोना का असर: 80 साल में पहली बार नहीं हुआ पशु मेले का आयोजनपशुधन घटने के साथ ही सिमटता मेला मैदानबंदर बांट की भेंट चढ़ा मेला मैदान

जयपुरApr 05, 2020 / 01:04 pm

Rakhi Hajela

कोरोना का असर: 80 साल में पहली बार नहीं हुआ पशु मेले का आयोजन

कोरोना का असर: 80 साल में पहली बार नहीं हुआ पशु मेले का आयोजन

पिछले तकरीबन 80 वर्षो से लगातार आयोजित होने वाला नागौरी नस्ल का राज्य स्तरीय विख्यात बलदेवराम पशु मेला इस वर्ष कोरोना वायरस की भेंट चढ़ गया। कोरोना वायरस के बाद हुए लॉकडाउन को देखते हुए इसबार यह मेला नहीं हुआ। जिसके चलते इस वर्ष चैत्र नवरात्रा में मेला मैदान खाली पड़ा है।
आपको बता दें कि कोरोना वायरस को लेकर के राज्य सरकार के आदेशों के बाद पशुपालन विभाग ने इस मेले के आयोजन को निरस्त करने के आदेश दिए थे। 25 मार्च से 8 अप्रेल तक चलने वाले मेले की स्थानीय स्तर पर प्रथम बैठक भी आयोजित हुई। तैयारियों को लेकर 18 और 19 मार्च को होने वाली दुकानों की नीलामी में भी की जानी थी। इस दौरान विभाग ने मेले के आयोजन को निरस्त करने के आदेश दिए। जिसके बाद स्थानीय मेला प्रभारी हरिराम कड़वासरा ने मेला आयोजन नहीं होने को लेकर प्रदेश सहित पड़ोसी राज्यों से आने वाले व्यापारी और पशुपालकों तक स्थानीय जिला कलेक्टर के माध्यम से सूचना भिजवाई। कोरोना के कारण पहली बार पशु मेले का आयोजन नहीं होने से पशुपालकों और व्यापारियों में भी निराशा देखने को मिली।
दो दशकों में लाखों की आवक घटकर हजारों में पहुंची
आपको बता दें कि विख्यात बलदेव पशु मेले में बिक्री के लिए लाखों की संख्या में नागौरी नस्ल के बैल बछड़े पहुंचने शुरू हुए। जिसके चलते डांगोलाई के पास आयोजित होने वाला पशु मेला मैदान छोटा पडऩे लगा। मेले में पशुधन की आवक बढऩे से 30 वर्षो पूर्व बलदेव पशु मेला दूदासागर के पास आयोजित होने लगा। वर्ष 1985 में आयोजित हुए बलदेव पशु मेले में सर्वाधिक 2 लाख पशु बिक्री के लिए पहुंचे। उपेक्षा के चलते मेले में आज पशुधन की संख्या घटकर हजारों में पहुंच गई है।
तीन साल तक के बछड़ों के परिवहन पर रोक
पशुपालकों ने बताया कि नागौरी नस्ल के नर गोवंश यानी बछड़े को तीन साल तक बाड़े में रखकर देखभाल करना कठिन हो जाता है। एक डेढ़ साल के बाद पशु की बिक्री हो जाए तो नए पशु को रखना फायदेमंद है अन्यथा नागौर जैसे जिले में जहां खेती का सारा काम ट्रेक्टर व मशीनों से होने लगा है, वहां बछड़े को रखना किसान के लिए खर्चीला व मुश्किल भरा है। तीन साल में करीब तीन पशु और जुड़ जाते हैं जिसकी देखभाल करना मुश्किल होता है। । पशु पालकों और व्यापारियों की ओर से भी इस संबंध में मांग की जा चुकी है। रोक हटाए जाने को लेकर केन्द्र और राज्य सरकार की ओर से गठित की गई कमेटी के निर्णय का पशुपालक एवं व्यापारियों को अब भी इंतजार हैं।
व्यापारियों को रास्ते में आने वाली समस्याएं
सड़क मार्ग पर कई बार व्यापारियों को बदमाश मारपीट कर रोक लेते हैं। ऐसे में व्यापारी मेले में नहीं आना ही बेहतर समझने लगे हैं। अपनी जान मुसीबत में डाल कर मेले में आना उन्हें फायदे का सौदा नहीं लगता।
मेला मैदान में कचरा डालने से परेशानी
मेला मैदान में जगहण्जगह कचरा डालने से गंदगी फैली हुई तथा मेले की तैयारियों को एनवक्त पर कुछ सफाई कर इतिश्री कर ली जाती है। पानी की व्यवस्था के लिए बनाए गए हौद लम्बे समय से जर्जर अवस्था में हैं। जिनमें मरम्मत कर पानी भरा जाता है, लेकिन कई हौद में लीकेज से पानी का रिसाव होने से कीचड़ फैलता है।
कम हुआ पशु की आवक का आंकड़ा
वर्ष 2017
पशु आवक बिक्री
गौवंश 3188 1246
भैंस वंश 947 276
उष्ट्र वंश 3038 447
अश्व वंश 730 60
अन्य 164 160
विभाग को आय : 3 लाख 18 हजार 912 रुपए
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वर्ष 2018
पशु आवक बिक्री
गौवंश 2164 580
भैंस वंश 621 318
उष्ट्र वंश 2845 288
अश्व वंश 647 75
अन्य 336 272
विभाग को आय : 2 लाख 71 हजार 688 रुपए
…..
वर्ष 2019
पशु आवक बिक्री
गौवंश 2064 571
भैंस वंश 623 262
उष्ट्र वंश 2991 309
अन्य 124 120
विभाग को आय : 3 लाख 15 हजार 345 रुपए
Rakhee Hajela,
आपको यह भी बता दें कि दूदासागर के पास 870 बीघा करीब जमीन पर पशु मेले का आयोजन शुरू हुआ था, जो विगत दशकों से लगातार हो रहे आवंटन के चलते घटकर सिमटता जा रहा हैं। घटते घटते वर्तमान में पशुपालन विभाग के पास मात्र 118 बीघा के करीब जमीन ही बच पाई है। मेला मैदान की जमीन में से अब्दुल रहमान प्रकरण के चलते 7 वर्षो पूर्व 400 बीघा करीब जमीन दूदासागर तालाब ओरण के लिहाज से सरोवर समिति के सुपर्द हुई। वहीं मेला मैदान की जमीन पर रोडवेज बस स्टेण्ड, फल सब्जी मण्डी, आईटीआई, आरटीडीसी, सामुदायिक चिकित्सालय, पुलिस थाना, 400 केवी विद्युत ग्रिड स्टेशन तथा राजस्थान के नाल के लिए जमीन आंविटत होने से मेला मैदान वर्तमान में खसरा नंबर 1199 पर सिमट कर अब मात्र 118 बीघा रह गया है।
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