दरअसल, यहां धौलपुर जिले की सैपऊ में स्थित एक मदरसे के प्राइमरी स्कूल में बच्चे कब्रिस्तान के कब्रों के बीच पैठकर शिक्षा हासिल करते हैं। तो वहीं यहां आने वाले बच्चों की संख्या भी अब लगातार घटती जा रही है, क्योंकि हम सभी जानते हैं कि कब्रिस्तान में शिक्षा हासिल करना और वो भी कम से कम इस सदी में अपने आप में समाज और सरकार के लिए सोच की बात है। लेकिन अब भी जो बच्चे यहां तालीम हासिल करने के लिए आते हैं, उसके पीछे कहीं ना कहीं उनकी मजबूरी होंगी।
यहां जिंदगी का पाठ पढ़ने आने वाले बच्चों में से कईयों को मिड-डे मील का लालच यहां ले आता है, तो कई सारे बच्चे गरीब परिवार से आते हैं, जिनके परिवार की आमदनी इतनी नहीं है कि वो अपने बच्चों का दाखिला बेहतर स्कूलों में करा सकें। इसलिए उन्हें कब्रिस्तान में स्थित इस मदरसे में शिक्षा लेने के लिए आना पड़ता है। सबसे बड़ी बात जहां बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं, वो स्थान मदरसा बोर्ड के अधीन आती है। जिसे राज्य की सरकार से सहायता भी मिलती है।
यहां पढ़ने वाले बच्चों की उम्र की बात करें तो सभी लगभग 6 से 14 साल मासूम यहां पेड़ के नीचे पढ़ने आते हैं, तो वहीं कब्रिस्तान में स्थित यह मदरसा पिछले 15 सालों से चल रहा है। जहां बच्चे कब्रिस्तान के गेट के पास अपनी चप्पले उतार कर भीतर आते हैं और कब्र के पास बैठकर तालीम लेते हैं। इतना ही बच्चे यहां खाना तक भी खाते हैं। जबकि किसी दिन अगर किसी को गुजर जाएं तो मदरसे के अध्यापक बच्चों को छुट्टी दे देते हैं।
इस बात को लेकर मदरसा कमेटी ने सरकार का ध्यान भी इस ओर आकर्षित किया लेकिन हालात अब भी ऐसी ही बनी हुई है। सरकार से कई बार आश्वसन मिलने के बाद भी यहां की हालात में कोई फर्क नजर नहीं आया। जबकि मदरसे में पढ़ाने वाले शिक्षकों का कहना है कि वे बच्चों को इस हालात में तालीम देने के लिए मजबूर हैं। उनका कहना कि इस मामले को लेकर कई बार शिक्षा विभाग के साथ-साथ अल्पसंख्यक विभाग से भी खत के जरिए चर्चा की जा चुकी है। तो वहीं इलाके के डीएम ने कहा कि फिलहाल मदरसे को किसी दूसरे जगह पर शिफ्ट किया जाएगा इसके लिए सरकारी भवन का निरीक्षण किया गया है। आदेश मिलते ही स्कूल को वहां ले जाया जाएगा।