अल्पआय वर्ग के लिए रहेगी शुभकारी
पंडित राममोहन शास्त्री के अनुसार पुरातन काल से सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने से पूर्व शुभ—अशुभ फल जानने की परंपरा रही है। इस बार संक्रांति भैसे पर सवार होकर धोबी के घर में प्रवेश कर रही है। वार नाम घोरा एवं नक्षत्र राक्षसी नाम होने से यह साल अल्पसंख्यक वर्ग, आदिवासी लोगों के लिए बहुत ही शुभ रहेगा। निर्धन और आदिवासी जनजाति वर्ग के लोगों के लिए नई सरकारी घोषणाएं होंगी। इस बार संक्रांति भैसे पर सवार होकर दिन के द्वितीय भाग में प्रवेश करेगी। इसमें संक्रांति का उपवाहन उंट है। शरीर पर महावर का लेप कर श्याम वर्ण के वस्त्र एवं गले में अर्क के फूलों की माला धारण कर हाथ में गंडासा लिए खप्पर के पात्र में दही का भक्षण करती हुई प्रवेश करेगी। इसके चलते पत्रकारों, लेखकों, शिक्षाविदों के लिए कष्टकारक रहेगी। इससे 30 मुहूर्तों की होने से अनाज, धन—धन्य के मावों में स्थिरता रहेगी।
कई साल बाद आया महायोग
पंडित राजकुमार चतुर्वेदी के अनुसार इस बार भी माघ महीने में संक्रांति पड़ रही है। साथ ही तीन संयोगों में दान- दक्षिणा व स्नान करने का साधकों को अनंत पुण्य प्राप्त होगा। साथ ही स्वयं के परिजनों सहित पूर्वजों के नाम से गाय को चारा खिलाना पुण्यकारी रहेगा। अशुभ फलों से बचने के लिए संक्रांति के प्रवेश के समय खड़े होकर सूर्यदेव को जल अर्पित करना चाहिए और 7 बार नमस्कार करना चाहिए। अब 2019 एवं 20 में मकर संक्रांति 15 जनवरी को आएगी।
पंडित राजकुमार चतुर्वेदी के अनुसार इस बार भी माघ महीने में संक्रांति पड़ रही है। साथ ही तीन संयोगों में दान- दक्षिणा व स्नान करने का साधकों को अनंत पुण्य प्राप्त होगा। साथ ही स्वयं के परिजनों सहित पूर्वजों के नाम से गाय को चारा खिलाना पुण्यकारी रहेगा। अशुभ फलों से बचने के लिए संक्रांति के प्रवेश के समय खड़े होकर सूर्यदेव को जल अर्पित करना चाहिए और 7 बार नमस्कार करना चाहिए। अब 2019 एवं 20 में मकर संक्रांति 15 जनवरी को आएगी।
सूर्य की गति से तय होता है पर्व
हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार संक्रांति में पुण्यकाल का विशेष महत्व है। मकर संक्रांति सूर्य दर्शन का पर्व है इसलिए इसका पुण्यकाल सूर्य की मौजूदगी में ही होता है। मान्यता है कि यदि सूर्य का मकर राशि में प्रवेश शाम या रात्रि में होता है, तो पुण्यकाल अगले दिन के लिए स्थानांतरित हो जाता है। लेकिेन इस बार 14 जनवरी को सूर्य धनु राशि को छोड कर मकर राशि में 1 बजकर 47 मीनट पर प्रवेश करेगा। इसके कारण पुण्यकाल पूरे दिन रहेगा।
हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार संक्रांति में पुण्यकाल का विशेष महत्व है। मकर संक्रांति सूर्य दर्शन का पर्व है इसलिए इसका पुण्यकाल सूर्य की मौजूदगी में ही होता है। मान्यता है कि यदि सूर्य का मकर राशि में प्रवेश शाम या रात्रि में होता है, तो पुण्यकाल अगले दिन के लिए स्थानांतरित हो जाता है। लेकिेन इस बार 14 जनवरी को सूर्य धनु राशि को छोड कर मकर राशि में 1 बजकर 47 मीनट पर प्रवेश करेगा। इसके कारण पुण्यकाल पूरे दिन रहेगा।
क्यों बदल जाती है तिथि
खगोल शास्त्रियों के अनुसार पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते हुए 72 से 90 सालों में एक डिग्री पीछे हो जाती है। इससे सूर्य मकर राशि में एक दिन देरी से प्रवेश करता है यानी मकर संक्रांति का समय 72 से 90 साल में एक दिन आगे खिसक जाता है। वर्ष 2014 से 2016 तक मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई गई थी। इसके बाद 2017 व 2018 में मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई गई। अब आगामी वर्ष 2019 और 2020 में भी मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनायी जाएगी। इससे पहले 1900 से 2000 तक यह पर्व 13 व 14 जनवरी को मनाया जाता रहा है। 1933 व 38 सहित कुछ साल में यह पर्व 13 जनवरी को मनाया गया था। हर साल सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने का समय मिनट देरी से होता है। इस तरह यह समय हर साल बढ़ता रहता है और तकरिबन 80 से 100 साल में यह समय एक दिन बढ़ जाता है। 2080 से यह पर्व 15 व 16 जनवरी को मनाया जाने लगेगा।
खगोल शास्त्रियों के अनुसार पृथ्वी अपनी धुरी पर घूमते हुए 72 से 90 सालों में एक डिग्री पीछे हो जाती है। इससे सूर्य मकर राशि में एक दिन देरी से प्रवेश करता है यानी मकर संक्रांति का समय 72 से 90 साल में एक दिन आगे खिसक जाता है। वर्ष 2014 से 2016 तक मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई गई थी। इसके बाद 2017 व 2018 में मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई गई। अब आगामी वर्ष 2019 और 2020 में भी मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनायी जाएगी। इससे पहले 1900 से 2000 तक यह पर्व 13 व 14 जनवरी को मनाया जाता रहा है। 1933 व 38 सहित कुछ साल में यह पर्व 13 जनवरी को मनाया गया था। हर साल सूर्य का धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करने का समय मिनट देरी से होता है। इस तरह यह समय हर साल बढ़ता रहता है और तकरिबन 80 से 100 साल में यह समय एक दिन बढ़ जाता है। 2080 से यह पर्व 15 व 16 जनवरी को मनाया जाने लगेगा।
त्योहार एक, नाम अनेक
मकर संक्राति को देश में अलग-अलग जगहों पर अलग नामों से जाना जाता है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल में जहां यह संक्रांति कहलाता है, वहीं बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में यह खिचड़ी पर्व के रूप में लोकप्रिय है। तमिलनाडु में इसे पोंगल के रूप में मनाया जाता है, तो वहीं, गुजरात और आसपास के क्षेत्रों में इसे उत्तरायण पर्व कहते हैं।
मकर संक्राति को देश में अलग-अलग जगहों पर अलग नामों से जाना जाता है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल में जहां यह संक्रांति कहलाता है, वहीं बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में यह खिचड़ी पर्व के रूप में लोकप्रिय है। तमिलनाडु में इसे पोंगल के रूप में मनाया जाता है, तो वहीं, गुजरात और आसपास के क्षेत्रों में इसे उत्तरायण पर्व कहते हैं।