इन कॉलोनियों में 30 वर्ष से पुराने मकान हैं। भले ही इन कॉलोनियों में पट्टे जारी नहीं किए गए हैं, लेकिन यहां पर सुविधाओं की कोई कमी नहीं हैं। पक्की सड़कों से लेकर बिजली कनेक्शन, स्ट्रीट लाइट के अलावा जलदाय विभाग पानी की लाइन भी डाल चुका है।
-12 फरवरी, 2013 को को एम्पावर्ड कमेटी की बैठक इन कॉलोनियों की जमीन को सरकारी माना गया। विकसित योजनाओं को आवासीय आरक्षित दर की 25 फीसदी राशि लेकर नियमन करने का प्रावधान रखा गया।
-वहीं, कॉलोनियों के लोगों का कहना है कि बैठक में जरूर सरकारी जमीन मान ली गई, लेकिन अभी भी राजस्व रिकॉर्ड में यह निजी खातेदारी की जमीन है।
1200 रुपए देने की स्थिति में नहीं
खातीपुरा बीड की 150 बीघा जमीन पर ये कॉलोनियां बसी है। यह निजी खातेदारी की जमीन थी। सरकारी रिकॉर्ड में मोतीलाल के नाम थी और बाद में 50 बीघा जमीन का बेचान कर दिया। इसमें से जेडीए ने 12 बीघा जमीन ली। इसका मुआवजा भी दिया। बाद में दवे आयोग ने इस जमीन को सरकारी बताया। इसके बाद मामला उलझता चला गया। 1200 रुपए प्रति वर्ग गज देने की स्थिति में नहीं हैं। 200 रुपए प्रति वर्ग गज में पटï्टे दिए जाएं।
– गोपाल सिंह राठौड़, उपाध्यक्ष, क्वींस रोड विकास महासंघ
सरकार ने यह जमीन गृह निर्माण समितियों को डेयरी खोलने व अन्य काम के लिए दी थी। लेकिन गृह निर्माण समिति ने कॉलोनियां काट दीं। दवे आयोग की रिपोर्ट में तय हुआ कि 31मार्च, 2013 तक जो बस गए, उनकी सूची बना लो और उनको 200 रुपए में नियमित कर दो। मौजूदा नियमन दर 3150 रुपए प्रति वर्ग गज पर आ गई। बची हुई जमीन पर कॉलोनी काटते चले गए । सरकार ने नियमन दर 1200 रुपए कर दी है। कुछ लोग पटï्टे ले भी रहे हैं।
-जगत राजेश्वर, उपायुक्त, जोन-07