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जयपुर

छिलके

हम जिंदगी भर मलाई दूसरों को देते रहे और खुद सिर्फ दूध पीते रहे। वह बुदबुदा उठी।

जयपुरSep 20, 2020 / 12:07 pm

Chand Sheikh

छिलके

छिलके

कहानी
डॉ. चमन टी माहेश्वरी

‘यह क्या कर रही है पीनल,’ सेब छील रही नौकरानी पीनल को सुलोचना ने डांटते हुए कहा।
‘जी, मेम साहब,’ वह एकदम घबरा उठी तेज आवाज में डांट सुनकर कि उससे क्या बड़ी गलती हुई है।
‘एप्पल के छिलके, पतले नहीं मोटे उतारो,’ मोंटू को एप्पल खाने में तकलीफ होती है।
‘जी मेम साहब,’ वह मन ही मन मुस्कुरा उठी मैडम की डांट सुनकर। कहां वह अपने बेटे को बीमारी के बावजूद सेब खिला नहीं पाती है इतने महंगे। डॉक्टर ने कहा था कि तुम्हारा बेटा बहुत कमजोर है, उसे एप्पल, बादाम खिलाओ। सेब खिलाने बैठ गई तो उसका महीने की पूरी पगार सेब में ही चली जाएगी। इतने मोटे छिलके उतारते हुए देखकर उसे नौकरानी होते हुए भी दुख होता था और यह सिर्फ सेब में ही नहीं दूसरे फल-फू्रट के साथ भी ऐसा होता था।
यहां पर आधा एप्पल ही छिलकों में चला जाता है और छिलके, कचरा पेटी में। काश किसी को एप्पल-पल्प भरे छिलके खाने को मिल जाए तो उसका शरीर ही संवर जाएं। मैडम को दुआएं दे। यह सोचकर उसके दिमाग में आया कि यह मोटे छिलके तो उसका बीमार बेटा भी खा सकता है। यदि मैडम छिलके मुझो घर ले जाने की इजाजत दे।
‘मैडम मुझो आपसे जरूरी बात करनी है,’ झाुकते हुए बोलते हुए देखा तो मैडम को लगा कि वह छुट्टी मांगने वाली है। नौकरानी छुट्टी पर जाए, यह किसी भी स्त्री को अच्छा नहीं लगता है। यदि वह घर का काम ही खुद कर सकती हो तो नौकरानी क्यों रखें?
‘कोई छुट्टी नहीं। पिछले महीने ही तुमने ली थी।’ मैडम ने बाढ़ आने से पहले ही पाल बांध ली। मैडम तेज आवाज में आगे बोली और ‘छुट्टी चाहिए तो यह समझा लो हमेशा के लिए छुट्टी।’
‘छुट्टी नहीं चाहिए।’ जवाब सुनकर मेम साहब ने राहत की सांस ली.
‘फिर?’
‘मैडम यह जो एप्पल के छिलके कचरे में फेंकते हैं। यदि आप आज्ञा दें तो मैं इसे अपने घर ले जाऊं।’ डरते-डरते नौकरानी पीनल बोली।
‘क्या!’ आश्चर्य हुआ, जो छिलके कचरे में फेंक देती थी उसे वह घर ले जाना चाहती है। उसके लिए वह डर कर मंजूरी भी मांग रही है। तो उसे उत्सुकता हुई कि छिलके का यह क्या करेगी। यह कोई नारियल के छिलके तो है नहीं जो घर पर बर्तन मांजने के लिए या फिर चूल्हा जलाने के काम आए।
‘क्यों चाहिए?’ गुस्सा नहीं प्रश्न था।
‘मेरा बेटा अभी बहुत समय से बीमार है। काफी कमजोर हो गया है। डॉक्टर नेउसे फल-फ्रूट खाने को बोला है और खासकर सेब खाने को कहा है, पर हम गरीब लोग हैं हम यह सब नहीं खरीद सकते हैं। इस कारण मैं सेब के छिलके मांग रही हूं। शायद इन छिलकों से उसकी ताकत आ जाए।’ पीनल ने मालकिन की जिज्ञासा शांत की।
‘ओहो, तो ऐसी बात है। भले ले जाओ,’ मालकिन सुलोचना इस तरह बोली कि जैसे बहुत बड़ा दान कर रही हो, जिसे वह कचरे में फेंका करती है।
‘मैम साहब, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।’ पीनल के मुंह से नहीं दिल से दुआ निकली। मैडम ने जैसे उसे एक महीने का बोनस दे दिया हो।
अब वह रोज वापिस घर जाते हुए प्लास्टिक थैली में एप्पल के छिलके ले जाती थी, जो एक-दो घंटे पहले छिले हुए होते थे। छिलके मोटे होने के कारण एप्पल के पल्प का भी स्वाद बाकी था। एप्पल के छिलकों के कारण बेटे राजेश में कमजोरी धीरे-धीरे दूर होने लगी और ताकत बढऩे लगी।
बीस दिन बाद सरकारी हॉस्पिटल के बच्चों के डॉक्टर को बताया। डॉक्टर उसके शरीर के परिवर्तन को देखकर हैरान था कि क्या जादू हुआ, ‘तुमने इसे एप्पल खिलाना शुरू कर दिया?’
‘नहीं-नहीं, एप्पल के पैसे नहीं है। पर एप्पल के छिलके रोज खिलाती हूं।’
‘मतलब?’ डॉक्टर आश्चर्य से बोला तो पीनल ने सारी बात बताई। आसपास के लोग व्यंग्य से हंसने लगे, पर डॉक्टर गंभीरता से मुस्कुरा कर बोला, ‘आप इसे एकदम सही वस्तु खिला रही है जो किस्मत वालों को ही मिलती है।’ पीनल के मुख पर हीनता के भाव देखकर डॉक्टर आगे बोला, ‘बहनजी, एप्पल क्या सभी फलों की असली ताकत तो उसके छिलकों में होती है। पर हम अपने दौलत व घमंड के कारण छिलके फेंक देते हैं। जो जितना पैसेवाला उसका छिलका उतना मोटा। पर यह लोग कभी समझाते नहीं है।’ आसपास के मरीज के रिश्तेदार भी डॉक्टर की ज्ञान की बात शांति वह गंभीरता से सुन रहे थे। यह सुनकर पीनल का शर्मींदगी का भाव थोड़ा कम हुआ।
जब वह प्लास्टिक थैली में छिलके ले जाती थी तब मालकिन की नजर उस की प्लास्टिक की थैली पर रहती थी। यहां तक कि उसने एक दो बार प्लास्टिक थैली खुद चैक भी की थी कि कि कहीं साबुत एप्पल तो नहीं ले जाती है। सुलोचना को अभी भी छिलके वाली बात गले नहीं उतर रही थी, भला कोई सिर्फ छिलके कैसे खा सकता है और क्या छिलकों से फायदा हो सकता है? मोंटू का स्कूल से आते ही शाम को एप्पल खाना नियम सा हो गया था। पूरा साल निकल गया और वह अभी भी छिलके ले जाती थी।
एक दिन पीनल काम पर आते ही मालकिन के चरणों में झाुक गई, ‘मेमसाहेब यह सब आपकी कृपा से ही हुआ है।’ सुलोचना के पांव में झाुककर गोल्ड मेडल रख दिया और खुशी से रोने लगी।
‘यह सब क्या है?’ सुलोचना समझा नहीं पाई। लाल रेशमी फीते से बंधा सोने का गोल्ड मेडल चमचमा रहा था।
‘मेमसाहब, मेरे बेटे ने स्कूल स्तर की राष्ट्रीय प्रतियोगिता में 200 मीटर की दौड़ में गोल्ड मेडल जीता है और यह सब आपकी कृपा से हुआ है।’ पीनल ने कृतज्ञता भाव से कहा। उसकी आंखों में खुशी व कृतज्ञता दोनों थी।
‘मेरे कारण गोल्ड मेडल जीता है।’ गोल्ड मेडल हाथ में लेकर आश्चर्य से सुलोचना मन ही मन बड़बड़ा उठी। उसे जानने की उत्कंठा थी कि उसके कारण कैसे गोल्ड मेडल जीता। ना तो उसने कभी नौकरानी के बच्चे के लिए कोई कोच रखा। न ही स्कूल में कोई सिफारिश की, हालांकि इसके पति की पहुंच बहुत ऊंची थी। उसने तो कभी भी अपनी नौकरानी को बच्चे के लिए एक छुट्टी तक नहीं दी।
‘मैडम आपको एक साल पहले की बात याद है न। जब मैंने आपसे प्रार्थना की थी कि एप्पल के छिलके मेरे को ले जाने दीजिए, क्योंकि मेरा बेटा कमजोर है और डॉक्टर ने एप्पल खाने की बात कही है।’
‘हां हां याद आया।’ गोल्ड मेडल व छिलकों का आपस में क्या मतलब? अभी तक सुलोचना समझा नहीं पाई।
‘मैडम मेरा बेटा बहुत कमजोर था। यहां तक कि घर में भी चल फिर नहीं सकता था। पर एप्पल के छिलकों के कारण ही सात दिन के अंदर ही चलने फिरने लायक हो गया और यह सेब के छिलकों के कारण ही हुआ, ऐसा खुद मुझो बच्चों के डॉक्टर ने कहा था। एप्पल के छिलकों से वह इतना ताकतवर हो गया कि स्कूल की दौड़ में भी प्रथम आया तो स्कूल वालों को भी विश्वास नहीं हुआ कि दो महीने पहले बीमारी से राजेश चल भी नहीं सकता था। फिर धीरे-धीरे राष्ट्रीय स्तर पर पहुंचा और गोल्ड मेडल जीता। मैडम आप मुझो छिलके ले जाने देने की कृपा ना करती तो आज मेरा बेटा गोल्ड मेडल नहीं जीतता।’ पीनल ने मैडम को उसकी महानता की कहानी बताई तो सुलोचना को विश्वास ही ना हुआ कि जो एप्पल वह अपने बेटे को दो साल से खिला रही है उससे उसको कोई खास फर्क नहीं पड़ा। मोंटू बार-बार बीमार पड़ जाता है और मोंटू के स्कूल स्तर पर ही दौड़ में प्रथम आने की बात तो वह सोच भी नहीं सकती है।
पीनल रसोई में काम करने चली गई और वह धम्म से सोफे पर बैठ गई तो उसको हताश देखकर ऑफिस जाते पति ने पूछा, ‘क्या हुआ सुलोचना?’
‘हम जिंदगी भर मलाई दूसरों को देते रहे और खुद सिर्फ दूध पीते रहे।’ वह बुदबुदा उठी। पति को समझा में नहीं आ रहा था कि सुलोचना क्या कह रही है?

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