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जयपुर

कहानी – उत्तरदायित्व

मेरे पिताजी बेहोश होकर जमीन पर पड़े थे तब डॉक्टर कहां था। इसे इसके किए की सजा मिलनी चाहिए थी।

जयपुरJan 18, 2021 / 10:50 am

Chand Sheikh

कहानी - उत्तरदायित्व

कहानी – उत्तरदायित्व

डॉ. शैलेष जैन

रामभरोसे अस्पताल में डिसिप्लिनेरी कमेटी बैठी थी। हॉल खचाखच भरा था। मामला था मरीज की मौत और एक रेजिडेंट डॉक्टर की पिटाई का। दो दिन पहले डॉ. रामअवतार, मेडिसिन फस्र्ट इयर की मरीज के परिजनों के जरिए पिटाई कर दी गई थी। आक्रोश में साथ के रेजिडेंट डॉक्टरों ने हड़ताल कर दी थी। मामला अखबारों में छा गया। अस्पताल एडमिनिस्ट्रेशन को कमेटी बैठानी पड़ी।
एक तरफ मरीज के परिजन और आम जनता बैठी थी, दूसरी तरफ रेजिडेंट डॉक्टर थे। कक्ष के बीच में मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य, अस्पताल के सुपरिंटेंडेंट और अन्य कमेटी मेंबर बैठे थे। मीडिया भी मौजूद था। एक अधेड़ उम्र के प्रोफेसर उठे और मरीज के परिजनों से सवाल पूछना शुरू किया, ‘रामलालजी आपके पिता थे? हमें उनके जाने का अफसोस है। आप हमें बताएंगे शुरू से कि उस दिन क्या हुआ था?’
‘सर, दोपहर के दो बज रहे थे। मेरे पिताजी यहां रामभरोसे कोविड अस्पताल में दो दिन से भर्ती थे। उन्हें सांस में तकलीफ थी। बीपी और शुगर भी था। दो दिन से वह 94 पर्सेंट पर ऑक्सीजन मेंटेन कर रहे थे। परसों दोपहर को अचानक दो बजे उन्हें सांस लेने में ज्यादा दिक्कत होने लगी।
उनके कहने पर मैंने ऑक्सीजन का फ्लो भी बढ़ा दिया, फिर भी सांस ंदिक्कत कम नहीं हुई। अचानक बिस्तर से उठकर नीचे गिर गए और अचेत हो गए।
मैंने उनके मुंह पर पानी के छींटे मारे क्योंकि ऐसा पहले भी एक-दो बार घर पर हुआ था। पानी के छींटे मारने से उन्हें होश आ जाता था लेकिन इस बार उन्हें होश नहीं आया। मैंने सिस्टर को आवाज लगाई, उस समय नर्सेज के कमरे में कोई भी नहीं था। फिर मैंने डॉक्टर को आवाज लगाई। मैं डॉक्टरों को आवाज लगाता रहा लेकिन कोई नहीं आया। करीब पंद्रह मिनट तक पिताजी बेहोश रहे। 15 मिनट बाद डॉ. राम अवतार ने आकर उन्हें देखा। उन्हें ट्रॉली पर लिया और सामने आईसीयू में शिफ्ट किया। दो घंटे बाद उनकी मौत हो गई।
आप ही बताइए क्या ये अस्पताल की लापरवाही नहीं है?’ रेजिडेंट्स में से एक ने कहा, ‘तुम शिकायत करते एडमिनिस्ट्रेशन अपने आप एक्शन लेता, तुमने बच्चे का हाथ तोड़ दिया?’
‘मेरे पिताजी बेहोश होकर जमीन पर पड़े थे तब डॉक्टर कहां था। इसे इसके किए की सजा मिलनी चाहिए थी।’ ‘सजा मुकर्रर करना तुम्हारे हाथ में है क्या? तुमने उसकी पूरी जिंदगी बर्बाद कर दी। उसे इतनी बेदर्दी से पीटा कि अब वह किसी भी गंभीर मरीज का इलाज करने से घबराएगा।’
प्रोफेसर अब डॉ. राम अवतार के पिता की ओर मुड़े और उनसे पूछा,’आप क्या कहना चाहते हैं?’ ‘सर, मुझो तो इतना पता है कि पिछले आठ महीने से मेरा बेटा घर नहीं आया। फोन पर कहता था कि कोविड मरीजों की सेवा करनी है। बहुत कम डॉक्टर हैं अस्पताल में इसलिए छुट्टी मिल पाना मुश्किल है।
12 से 18 घंटे की ड्यूटी करना तो अब नॉर्मल बात है। अब काम करने की आदत जो हो गई है। पापाआप चिंता मत करो, आप मां और दीदी का ध्यान रखो। मास्क पहनकर रखना। गर्मी में दो घंटे पीपीई किट नहीं पहना जाता है पापा। 90 से 100 मरीजों पर एक डॉक्टर हूं। सुबह राउंड खत्म करने में दो-ढाई घंटे लगते हंै। फिर उनके नोट्स फाइल में डालने पड़ते हैं। सब बड़े डॉक्टर मेरे काम की तारीफ करते हैं।
दोपहर का खाना तो जो मरीजों का आता है उसमें से खा लेते हैं। शाम के समय हॉस्टल आ पाते हैं।’ इतना कहते कहते उनकी आंखें भर आईं।
‘डॉक्टर साहब आज लग रहा है कि कहीं मैंने अपने बच्चे को डॉक्टर बनाकर कोई गलती तो नहीं कर दी! क्या मैंने यह दिन देखने के लिए उसके इतने साल बर्बाद किए। मैं इनसे सिर्फ यही पूछना चाहता हूं कि क्या आपका बच्चा अगर डॉक्टर होता और कोई उसे ऐसे पीट जाता तो क्या करते?’
फिर वह सीनियर प्रोफेसर मीडिया की तरफ मुड़े और बोले, ‘आप लोगों ने मरीज के मरने पर अखबारों में बहुत कुछ छापा। अब असलियत सामने है। आप लोग कुछ पूछना चाहते हैं?’ एक पत्रकार खड़ा हुआ और मरीज के रिश्तेदार से पूछा कि अगर डॉक्टर वहां नहीं था तो ट्रॉली तो वहीं पड़ी थी और आईसीयू सामने था, आपने ख़ुद ही अपने पिता को ट्रॉली पर लेकर आईसीयू में शिफ्ट करवाने की कोशिश क्यों नहीं की?’
‘जी…उस समय मुझो कुछ सूझाा नहीं।’ ’15 मिनट तक आपको कुछ नहीं सूझाा और पिताजी की मौत के 15 मिनट बाद ही आपने डॉक्टर को इतना पीटा कि हाथ-पैर तोड़ दिए?’ ‘पहले 15 मिनट क्या कर रहे थे?’
‘जी मैं इस अस्पताल की लापरवाही का विडियो भी बना रहा था ताकि उसे लोगों के सामने पेश कर सकूं, यह देखिए विडिओ!’ पूरे हॉल में सन्नाटा पसर गया। सब अवाक् उस रिश्तेदार को देख रहे थे।

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