इस तरह हुई थी मां से मुलाकात
शबाना ने बताया कि प्रोग्रेसिव राइटर्स गु्रप के सम्मलेन में पिता ने अपनी कविता ‘औरत’ सुनाई थी। इसमें मेरी मां शौकत भी वहां आई हुई थी। इस कार्यक्रम में देश के नामचीन कवि आए हुए थे और उस वक्त पॉएट किसी सुपरस्टार से कम नहीं होते थे। एेसे में जब मुशायरा खत्म हुआ तो मां ने अपनी दोस्त को कहा कि जो व्यक्ति औरतों के बारे में इतना सही और स्पष्ट सोच रखता है, वहीं मेरा शौहर बनेगा। जब कवि उतरकर नीचे आ रहे थे, तो मां कैफी आजमी को देखने के बाद सरदार जाफरी के पास ऑटोग्राफ लेने पहुंच गई।
शबाना ने बताया कि प्रोग्रेसिव राइटर्स गु्रप के सम्मलेन में पिता ने अपनी कविता ‘औरत’ सुनाई थी। इसमें मेरी मां शौकत भी वहां आई हुई थी। इस कार्यक्रम में देश के नामचीन कवि आए हुए थे और उस वक्त पॉएट किसी सुपरस्टार से कम नहीं होते थे। एेसे में जब मुशायरा खत्म हुआ तो मां ने अपनी दोस्त को कहा कि जो व्यक्ति औरतों के बारे में इतना सही और स्पष्ट सोच रखता है, वहीं मेरा शौहर बनेगा। जब कवि उतरकर नीचे आ रहे थे, तो मां कैफी आजमी को देखने के बाद सरदार जाफरी के पास ऑटोग्राफ लेने पहुंच गई।
यह वाकया कैफी साहब ने देख लिया था। जब मां उनके पास ऑटोग्राफ लेने पहुंची तो पिता ने कुछ गुस्से वाली शायरी लिखकर ऑटोग्राफ दिया। एेसे में मां भी गुस्से में हो गई और कहा कि आपने मेरी दोस्त को प्यारभरी शायरी लिखकर ऑटोग्राफर दिया और मुझे आपने गुस्सेभरे शब्दों में ऑटोग्राफ दिया, एेसा क्यों? एेसे में कैफी आजमी ने कहा कि मैंने देखा कि आप मुझे देखने के बाद पहले सरदार के पास क्यों गई? यहीं से उनके प्यार की शुरुआत हो चुकी थी। प्यार का आलम तो यह था कि कैफी आजमी ने मेरी मां को खून से लिखा खत भेजा था, जिसके बाद मां ने अपनी शादी की बात खुद के पिता से की थी।
कैफी आजमी की कविता ‘औरत’ से कुछ लाइनें
उठ मेरी जान, मेरे साथ ही चलना है तुझे
जिंदगी जोहद, में है सब्र के काबू में नहीं
नब्ज-ए-हस्ती का लहू कांपते आंसू में नहीं
उडऩे खुलने में है निकहत, खम-ए-गेसू में नहीं
जन्नत इक और है जो मर्द के पहलू में नहीं
उस की आजाद रविश पर भी मचलना है तुझे
उठ मेरी जान, मेरे साथ ही चलना है तुझे
उठ मेरी जान, मेरे साथ ही चलना है तुझे
जिंदगी जोहद, में है सब्र के काबू में नहीं
नब्ज-ए-हस्ती का लहू कांपते आंसू में नहीं
उडऩे खुलने में है निकहत, खम-ए-गेसू में नहीं
जन्नत इक और है जो मर्द के पहलू में नहीं
उस की आजाद रविश पर भी मचलना है तुझे
उठ मेरी जान, मेरे साथ ही चलना है तुझे
खतों के जवाब लिखा करते थे
शबाना ने कहा कि अब्बा ने फिल्मों में कई गाने लिखे हैं और वे गाना लिखने के बारे में अक्सर कहते थे कि पहले कब्र खोदो और फिर मुर्दा ढूंढ़ कर लाओ। वे अपनी टेबल पर ही लिखा करते थे और उन्हें फाउंटेन पेन रखने का बहुत शौक था। वे जब भी गाना लिखते थे, उससे पहले वे दुनियाभर से उनके चाहने वालों के खतों का जवाब दिया करते थे। इसके बाद अपनी डेस्क साफ करते थे और उसके बाद गाने पर काम शुरू करते थे। अपना गाना वे डेड लाइन से कुछ समय पहले तैयार जरूर कर लेते थे। ‘वक्त ने किया ये हंसी सितमÓ गाना इसी तरह तैयार हुआ था।
शबाना ने कहा कि अब्बा ने फिल्मों में कई गाने लिखे हैं और वे गाना लिखने के बारे में अक्सर कहते थे कि पहले कब्र खोदो और फिर मुर्दा ढूंढ़ कर लाओ। वे अपनी टेबल पर ही लिखा करते थे और उन्हें फाउंटेन पेन रखने का बहुत शौक था। वे जब भी गाना लिखते थे, उससे पहले वे दुनियाभर से उनके चाहने वालों के खतों का जवाब दिया करते थे। इसके बाद अपनी डेस्क साफ करते थे और उसके बाद गाने पर काम शुरू करते थे। अपना गाना वे डेड लाइन से कुछ समय पहले तैयार जरूर कर लेते थे। ‘वक्त ने किया ये हंसी सितमÓ गाना इसी तरह तैयार हुआ था।
कैफी आजमी की नज्म ‘एक लम्हा’ जिंदगी नाम है कुछ लम्हों का
और उन में भी वही इक लम्हा
जिस में दो बोलती आंखें
चाय की प्याली से जब उट्ठीं
तो दिल में डूबीं
डूब के दिल में कहीं
आज तुम कुछ न कहो
आज मैं कुछ न कहूं
बस यूंही बैठे रहो
हाथ में हाथ लिए
गम की सौगात लिए
गर्मी-ए-जज्बात लिए
कौन जाने कि उसी लम्हे में
दूर पर्बत पे कहीं
बर्फ पिघलने ही लगे
और उन में भी वही इक लम्हा
जिस में दो बोलती आंखें
चाय की प्याली से जब उट्ठीं
तो दिल में डूबीं
डूब के दिल में कहीं
आज तुम कुछ न कहो
आज मैं कुछ न कहूं
बस यूंही बैठे रहो
हाथ में हाथ लिए
गम की सौगात लिए
गर्मी-ए-जज्बात लिए
कौन जाने कि उसी लम्हे में
दूर पर्बत पे कहीं
बर्फ पिघलने ही लगे
मोची बनना भी चाहोगी तो मैं सर्पोट करूंगा
शबाना ने कहा कि मेरी मां भी एक्टिंग किया करती थी और मैं उनको रिहर्सल में हेल्प किया करती थी। जब लगा कि मुझे भी एक्टिंग या थिएटर में ही कॅरियर बनाना है,तो मैंने पिता से बात करी। उन्होंने कहा कि यदि तुम मोची भी बनना चाहोगी तो मैं आपको सर्पोट करूंगा, बस तुम बेहतरीन मोची बनने की कोशिश करना। ये शब्द आज भी मेरे दिमाग में बसे हुए है।
शबाना ने कहा कि मेरी मां भी एक्टिंग किया करती थी और मैं उनको रिहर्सल में हेल्प किया करती थी। जब लगा कि मुझे भी एक्टिंग या थिएटर में ही कॅरियर बनाना है,तो मैंने पिता से बात करी। उन्होंने कहा कि यदि तुम मोची भी बनना चाहोगी तो मैं आपको सर्पोट करूंगा, बस तुम बेहतरीन मोची बनने की कोशिश करना। ये शब्द आज भी मेरे दिमाग में बसे हुए है।