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जयपुर

CM ने दी क्रांतिकारी खुदीराम बोस को श्रद्धांजलि, भगवद्गीता हाथ में ले सबसे कम उम्र में आज ही के दिन चढ़े थे फांसी पर

स्वतंत्रता दिवस से चंद दिन पहले जानिए क्रांतिकारी युवा शहीद खुदीराम बोस के बारे में, जिसने महज 18 साल की उम्र में देश के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया।

जयपुरAug 11, 2019 / 01:13 pm

Nidhi Mishra

Khudiram Bose-India's Youngest Freedom Fighter, Know His Life

CM ने दी क्रांतिकारी खुदीराम बोस को श्रद्धांजलि, भगवद्गीता हाथ में ले सबसे कम उम्र में आज ही के दिन चढ़े थे फांसी पर

जयपुर। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ( Rajasthan CM Ashok Gehlot ) ने अपने ट्विटर अकाउंट से क्रांतिकारी शहीद खुदीराम बोस ( veer khudiram bose ) को श्रद्धांजलि अर्पित की है। CM ने लिखा है— ‘शहीद खुदीराम बोस के शहादत दिवस पर मेरी विनम्र श्रद्धांजलि। सबसे कम उम्र के क्रांतिकारी, जो मातृभूमि के प्रति अपने अटूट प्रेम के लिए मुस्कुराते हुए फांसी पर चढ़ गए।’
https://twitter.com/hashtag/KhudiramBose?src=hash&ref_src=twsrc%5Etfw
आइए आज आपको खुदीराम बोस के क्रांतिकारी जीवन से परिचित कराते हैं।


भारत देश की आजादी ( India independence ) के लिए वैसे तो ऐसे कई लोग हैं, जिन्होंने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए, लेकिन महज 18 साल की उम्र में हंसते हंसते सूली पर चढ़ने वाले सबसे युवा क्रांतिकारी शहीदों में खुदीराम बोस का नाम आता है। खुदीराम बोस का नाम हालांकि कम प्रचलित जरूर है, लेकिन उनके बलिदान को भुलाया नहीं जा सकता। खुदीराम को सबसे कम उम्र के उग्र और युवा क्रांतिकारी देशभक्त का दर्जा हासिल है।
3 दिसंबर, 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के बहुवैनी गांव में पिता बाबू त्रैलोक्यनाथ बोस और माता लक्ष्मीप्रिया देवी के घर खुदीराम का जन्म हुआ। नवीं कक्षा तक पढ़ने के बाद ही उन्होंने पढ़ाई छोड़ दी और मुक्ति आंदोलन में हिस्सा लिया। खुदीराम के मन में स्वाधीनता की प्रगाढ़ ललक थी। 11 अगस्त यानी आज ही के दिन साल 1908 में उन्हें महज 18 साल की उम्र में फांसी के तख्ते पर चढ़ा दिया गया और ये युवा क्रांतिकारी हंसते हंसते देश के लिए शहीद हो गया।

इस तरह स्वतंत्रता आंदोलनों में निभाई भूमिका
नवीं कक्षा के बाद खुदीराम बोस ने स्कूल छोड़ दी और रिवोल्यूशनरी पार्टी के सदस्य बन गए। खुदीराम ने वन्दे मातरम् ( Vande Mataram ) पैंपलेट बांटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 1905 में बंगाल के विभाजन के विरोध में चलाए गए आंदोलन में भी उन्होंने अति उत्साह से हिस्सा लिया।
बम विस्फोट में आया नाम
6 दिसंबर 1907 को बंगाल के नारायणगढ़ रेलवे स्टेशन पर हुए बम विस्फोट में भी खुदीराम का नाम सामने आया था। बम विस्फोट के बाद खुदीराम को एक बेहद महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली। उन्हें अंग्रेज अधिकारी किंग्सफोर्ड को मारने की जिम्मेदारी दी गई, जो काफी क्रूर था। इसमें उन्हें प्रफ्फुल चंद्र चाकी का साथ मिला। इस जिम्मेदारी मिलने के बाद दोनों बिहार के मुजफ्फरपुर जिले पहुंचे। एक दिन अवसर पाकर उन्होंने किंग्सफोर्ड की बग्घी में बम फेंक दिया, लेकिन उस बग्घी में किंग्सफोर्ड नहीं था। उसकी जगह एक दूसरे अंग्रेज़ अधिकारी की पत्नी और बेटी थीं। इन दोनों की ही इस विस्फोट में मौत हो गई। बम फेंकने के बाद खुदीराम को फांसी की सजा सुना दी गई। खुदीराम ने सिर्फ 18 साल की उम्र में हाथ में भगवद्गीता लेकर हंसते – हंसते फांसी के फंदे पर चढ़कर इतिहास रच दिया।
Khudiram Bose-India's Youngest Freedom Fighter, Know His Life
मजिस्ट्रेट ने की तारीफ
एक मीडिया रिपोर्ट की मानें तो, मुजफ्फरपुर जेल में जिस मजिस्ट्रेट ने उन्हें फांसी पर लटकाने का आदेश सुनाया था, उसी ने बाद में बताया कि खुदीराम बोस एक शेर के बच्चे की तरह बिना डरे फांसी के तख़्ते की ओर बढ़ा था। शहादत के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गए कि बंगाल के जुलाहे उनके नाम की एक खास किस्म की धोती बुनने लगे।

राजद्रोह के आरोप से मुक्ति
फरवरी 1906 में मिदनापुर में औद्योगिक तथा कृषि प्रदर्शनी लगी थी। इस प्रदर्शनी को देखने के लिये आसपास के स्थानों से कई लोग आए। ऐसे में खुदीराम ने बंगाल के एक क्रांतिकारी सत्येंद्रनाथ द्वारा लिखे ‘सोनार बांगला’ नामक ज्वलंत पत्रक की प्रतियां बांटना शुरू कर दिया। ऐसा करते उन्हें एक पुलिस वाले ने देख लिया और वो खुदीराम को पकड़ने के लिए भागा, लेकिन खुदीराम ने उस सिपाही के मुंह पर घूंसा मार दिया और बचे हुए पत्रक बगल में दबाकर भाग निकले। इस घटना के बाद राजद्रोह के आरोप में सरकार ने उन पर अभियोग चलाया लेकिन गवाही न मिलने से खुदीराम निर्दोष साबित हुए।

कैद से भागे
इतिहासविद मालती मलिक के अनुसार 28 फरवरी 1906 को खुदीराम बोस को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन वे कैद से भाग निकले। करीब लगभग दो महीने बाद अप्रैल में उन्हें फिर से पकड़ लिया गया। फिर 16 मई 1906 को रिहा हो गए।

खुशी खुशी फांसी पर चढ़े तो अंग्रेज अधिकारी ने घबराकर छोड़ी नौकरी
किंग्जफोर्ड पर हमले की साजिश के दूसरे दिन पुलिस ने शक के आधार पर प्रफुल्लकुमार चाकी पकड़ना चाहा। चाकी ने खुद पर गोली चलाकर अपने प्राण त्याग दिए। जबकि खुदीराम को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। इस गिरफ्तारी का अन्त निश्चित ही था। 11 अगस्त 1906 को भगवद्गीता हाथ में लेकर खुदीराम धैर्य के साथ खुशी – खुशी फांसी चढ़ गए, लेकिन किंग्जफोर्ड ने घबराकर नौकरी छोड़ दी और जिन क्रांतिकारियों को उसने कष्ट दिया था उनके भय से उसकी शीघ्र ही मौत भी हो गयी।
फांसी के बाद खुदीराम इतने लोकप्रिय हो गये कि बंगाल के जुलाहे एक खास किस्म की धोती बुनने लगे। इतिहासवेत्ता शिरोल के अनुसार बंगाल के राष्ट्रवादियों के लिये वह वीर शहीद और अनुकरणीय हो गया। विद्यार्थियों तथा अन्य लोगों ने शोक मनाया। कई दिन तक स्कूल कालेज सभी बन्द रहे और नौजवान ऐसी धोती पहनने लगे, जिनकी किनारी पर खुदीराम लिखा होता था।

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