पूनिया का निर्वाचित कार्यकाल दिसम्बर 2022 में ही पूरा हो गया था। पार्टी ने राष्ट्रीय अध्यक्ष जे. पी. नड्डा के कार्यकाल को आगे बढ़ाने का निर्णय किया था। इसके बाद से ऐसा माना जा रहा था कि जहां-जहां चुनाव हैं, वहां प्रदेश अध्यक्ष नहीं बदले जाएंगे। पार्टी के नेता भी ऐसे संकेत दे रहे थे, लेकिन प्रदेश भाजपा में गुटबाजी बढ़ती जा रही थी। यह देख एकाएक ही पार्टी ने नए अध्यक्ष की नियुक्ति का निर्णय किया औरसी.पी. जोशी के रूप में निर्गुट नेता को कमान सौंपी।
सी.पी. जोशी 2014 में पहली बार भाजपा से सांसद बने थे और 2019 में दूसरी बार सांसद चुने गए। वे 9 साल से सांसद हैं और वर्तमान में पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष भी हैं। गुटबाजी से उनकी दूरी रही। वे किसी तरह की कंट्रोवर्सी में भी नहीं फंसे। एक विधानसभा उप चुनाव में कुछ बातें उनके विरोध में भी उठीं, लेकिन वे भी धीरे-धीरे गौण हो गईं।
संघ की पसंद से पूनिया बने थे अध्यक्ष
वर्ष 2019 में सतीश पूनिया को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था। ऐसा माना जाता है कि उनको अध्यक्ष बनाने में सबसे बड़ी भूमिका राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की रही। संघ के राजस्थान पदाधिकारियों ने हमेशा पूनिया का सहयोग किया।
पार्टी के लिए काम करता रहूंगा
मैं पार्टी का आभारी हूं कि मेरे जैसे साधारण किसान के घर में जन्मे कार्यकर्ता को तीन वर्ष तक जिम्मेदारी देकर सम्मान दिया। इन तीन साल में संगठनात्मक रचना और आंदोलन द्वारा पार्टी को पूरी ताकत से धरातल पर सक्रिय करने में योगदान दे पाया। एक कार्यकर्ता के रूप में पार्टी के निर्देशानुसार जीवनपर्यन्त काम करता रहूंगा।
सतीश पूनिया, पूर्व प्रदेशाध्यक्ष
अरुण सिंह ने दिए संकेत, पूनिया की होगी अहम भूमिका
सतीश पूनिया को प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने के बाद यह सवाल खड़ा हो गया है कि पार्टी में उनको आगे क्या जिम्मेदारी दी जाएगी। पार्टी के प्रदेश प्रभारी एवं राष्ट्रीय महामंत्री अरुण सिंह ने ट्वीट कर बताया कि पूनिया ने प्रदेश अध्यक्ष के रूप में पार्टी का विस्तार किया और संगठन को मजबूत किया। सफलतापूर्वक गहलोत सरकार के खिलाफ संघर्ष का प्रभावी नेतृत्व किया। आगे भी अहम भूमिका रहेगी।
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ये दो पद रिक्त
भाजपा के प्रदेश में दो पद रिक्त चल रहे हैं। गुलाब चंद कटारिया को असम का राज्यपाल नियुक्तकिए जाने के बाद नेता प्रतिपक्ष का पद रिक्तहै। इसी तरह चुनाव अभियान समिति का संयोजक भी बनाया जाना है। इन दोनों पदों में से कोई पद पूनिया को नहीं दिया जाता है तो भाजपा उन्हें राष्ट्रीय टीम में भी पद दे सकती है।
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पूनिया को बदलने के 5 प्रमुख कारण-
1. पार्टी को राजस्थान में जातीय संतुलन बैठाना था।
2. पूनिया समर्थक उनको सीएम प्रोजेक्ट कर रहे थे, आलाकमान को यह ठीक नहीं लगा।
3. संगठन को मजबूत करनेे के दावे तो खूब किए, लेकिन कई प्रदर्शनों में उम्मीद के मुताबिक भीड़ नहीं जुट सकी।
4. भाजपा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसुंधरा राजे, संगठन महामंत्री चन्द्रशेखर, केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत सहित कई नेताओं के साथ नहीं बैठा पा रहे थे तालमेल।
5. किरोड़ीलाल मीणा मामला दिल्ली तक पहुंचा। इस मामले में भी कई नेताओं ने दिया था नेगेटिव फीडबैक।
यों हुई सी.पी. जोशी की ताजपोशी
1. पार्टी को चार साल से अच्छे ब्राह्मण चेहरे की तलाश थी, यह सी.पी. जोशी के रूप में पूरी हुई।
2. प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में सांसद राजेन्द्र गहलोत, सी.पी. जोशी के नाम सबसे आगे थे, युवा होने से जोशी के पक्ष में पार्टी का निर्णय हुआ।
3. केन्द्र सरकार में राजस्थान से राजपूत, जाट, एससी वर्ग का प्रतिनिधित्व है, लेकिन ब्राह्मण समाज का कोई प्रतिनिधित्व नहीं था। जातिगत संतुलन साधने की योजना में राजेन्द्र गहलोत पर सी.पी. जोशी भारी पड़े।
4. सी.पी. जोशी पर किसी गुट का ठप्पा नहीं है, वे सभी से संवाद रखते हैं।
5. गुलाबचंद कटारिया को राज्यपाल बनाए जाने से मेवाड़ में नेता की तलाश हो रही थी, जोशी को आगे बढ़ा कटारिया की कमी पूरी करने की कोशिश हुई है।