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जयपुर

किर्गिस्तान की शान को यूनेस्को का सम्मान!

किर्गिस्तान की हेडगियर को यूनेस्को ने अमूर्त विरासत का दर्जा देकर सम्मानित किया है।

जयपुरDec 20, 2019 / 11:25 am

Kiran Kaur

किर्गिस्तान की शान को यूनेस्को का सम्मान!

किर्गिस्तान की शान को यूनेस्को का सम्मान!

मध्य एशिया में एक देश है जिसे किर्गिस्तान कहा जाता है। कहने वाले इसे किर्गिजिया भी कहते हैं और आधिकारिक तौर पर इसे ‘किर्गिज गणराज्य’ भी कहा जाता है। अब इसी देश को दुनिया में एक नई पहचान मिली है और यह उपलब्धि यहां के एक हेडगियर या साधारण शब्दों में कहें तो एक टोपी ने दिलाई है। इस हेडगियर को यूनेस्को ने अमूर्त विरासत का दर्जा देकर सम्मानित किया है। हेडगियर को ‘अक-कल्पक’ के नाम से जाना जाता है। यूनेस्को की ओर से पुरुषों के द्वारा पहने जाने वाले इस हेडगियर को मिले सम्मान से किर्गिस्तान काफी उत्साहित है और उसे उम्मीद है कि इस घटना के बाद से देश के पर्यटन में इजाफा होगा। अ क-कल्पक एक कशीदाकारी ऊंची टोपी होती है, जो कि किर्गिस्तान में काफी श्रद्धेय है। इस टोपी का अपना राष्ट्रीय दिवस होता है। हर साल वर्ष 2016 के बाद से पांच मार्च के दिन अक-कल्पक दिवस मनाया जाता है। तीन साल पहले पांच मार्च के दिन जब राजधानी बिश्केक के केंद्र के आसपास तीन मीटर ऊंची अक-कल्पक लगाई थी, उसी के बाद से यह दिवस मनाया जाने लगा। पूर्व राष्ट्रपति के सलाहकार और नियमित अक-कल्पक पहनने वाला टोपचुबेक तुर्गुनलीव ने बताया कि इस कशीदाकारी ऊंची टोपी के चार पैनल शानदार किर्गिज पहाड़ों की चोटियों के हमेशा बर्फ से ढके रहने के प्रतीक हैं। स्थानीय रूप से निर्मित एक कलपक की लागत 20 डॉलर है, हालांकि चीन में बने सस्ते सिंथेटिक संस्करण भी मार्केट में बेचे जाते हैं। इस ऊंची टोपी की शुरुआत 13वीं सदी से होती है जब किर्गिस्तान और मध्य एशिया के लोगों के द्वारा इसे पहना जाने लगा था। यह पहाड़ी इलाकों के लिए अच्छी टोपी है और किर्गिस्तान की संस्कृति में इसका बड़ा महत्व है। किर्गिस्तान के बदलते मौसम में खानाबदोश लोगों के लिए उपयोगी साबित होने के बाद यह काफी लोकप्रिय होती चली गई।

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