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जयपुर

विधिवेत्ता बोले…बदले हालात में कानून बदलने पर हो विचार

जीवनभर का सौहार्द्र बिगाड़ा, सजा मात्र तीन साल की

जयपुरJul 03, 2022 / 02:55 am

Shailendra Agarwal

बालोद जिले में बंद

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जयपुर। क्या मौजूदा कानून उदयपुर में निर्मम हत्या का वीडियो वायरल कर साम्प्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने का प्रयास जैसी घटनाओं से निपटने के लिए काफी है? क्या निर्भया मामले के बाद जैसे कानून बदला गया, उसी तरह ऐसी घटनाओं पर कड़ा संदेश देने के लिए कानून बदलना चाहिए? गुस्साए आमजन के मन में उठ रहे ऐसे ही सवालों पर विधिवेत्ताओं का कहना है कि कानून बनाने या बदलने वाली संस्थाएं संसद और विधानपसभा मौन क्यों हैं? भारतीय दण्ड संहिता के तहत तीन साल की सजा वाला कानूनी प्रावधान जीवनभर का सौहार्द्र बिगड़ने से रोकने के लिए नाकाफी है।इंसान और इंसानियत की हत्या कर साम्प्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने वाली उदयपुर की घटना तो ताजा है, करीब साढ़े चार साल राजसमंद में भी एक व्यक्ति अचेत करके जलाने का मामला सामने आया। उस मामले में ट्रायल के तहत अब तक बमुश्किल एक चौथाई गवाहों के ही बयान हो पाए है। दूसरे राज्यों में भी अनेक घटनाएं साम्प्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने वाली सामने आती रही हैं, लेकिन सऐसे समाज को हिला देने वाले अपराधों पर भारतीय दण्ड संहिता के तहत सजा नाकाफी है।
आइपीसी में सजा— हत्या होने पर धारा 302 के तहत फांसी तक हो सकती है।

— साम्प्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने वालों को धारा 153 ए के तहत तीन साल तक की सजा।उदयपुर की घटना
— गला काट कर हत्या करने और धमकी भरा वीडियो वायरल करने के मामले में पांच आरोपी पकड़े गए और जांच एनआइए व एटीएस के पास है। बताया जा रहा है कि इस घटना को साजिश के तहत अंजाम दिया गया। शनिवार को आरोपियों को पेश कर रिमांड पर लिया गया।राजसमंद की घटना
— दिसम्बर 2017 में एक व्यक्ति को गेंती से मारा, अचेत होने पर पेट्रोल डालकर जला दिया गया। उसका चेतावनी भरा वीडिया बनाकर वायरल किया गया। 56 में से अब तक 14—15 लोगों की ही गवाही हुई है।’साम्प्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ने के मामले में तीन साल की सजा है, जिसे अपीलेट कोर्ट स्थगित कर सकती है। सरकार को आइपीसी में बदलाव करना चाहिए। इससे वैधानिक प्रावधान सख्त होंगे। ऐसे मामले कोर्ट के भरोसे नहीं छोड़े जा सकते।’— आशीष कुमार सिंह, अधिवक्ता
‘ऐसी घटना समाज पर हमला है। अलग कानून हो तो ठीक है। मामला विशेष कोर्ट को सौंपा जाए और विशेष जांच दल बनाया जाए। साक्ष्य अधिनियम को भी बदला जाना चाहिए।’— पानाचंद जैन, पूर्व न्यायाधीश, राजस्थान हाईकोर्ट’मामले की तह में जाकर कारण खोजने की जरूरत है। बच्चों को गीता, कुराण, बाइबल पढाए जाएं, उनमें राष्ट्र भावना जागृत की जाए। यह सामाजिक समस्या है, लेकिन सजा सख्त होनी चाहिए। कानून बनाते समय सुधारवादी सोच को प्राथमिकता दी जाए।’— विनोद शंकर दवे, पूर्व न्यायाधीश, राजस्थान हाईकोर्ट
‘आइपीसी की धारा 153 व 295 के तहत पर्याप्त सजा है। सजा के लिए नया कानून बनाने को प्राथमिकता देने के बजायसीआरपीसी के तहत प्रक्रिया को प्रभावी बनाया जाए। ऐसी घटनाओं को सामान्य हत्या की श्रेणी में नहीं माना जाए। जांच के लिए अलग सेल बनाया जाए।’— गोविन्द माथुर, पूर्व मुख्य न्यायाधीश, इलाहाबाद हाईकोर्ट
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