राठौड़ ने कहा कि राज्य सरकार ने एक तरफ नवंबर 2020 में राजस्थान विधानसभा में सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की धारा 60 को संशोधित कर सिविल प्रक्रिया संहिता (राजस्थान संशोधन) विधेयक-2020 में यह प्रावधान किया कि बैंक या किसी वित्तीय संस्थान का कर्ज नहीं चुका पाने की स्थिति में संबंधित बैंक या वित्तीय संस्थान किसान की 5 एकड़ तक की जमीन कुर्क या नीलाम नहीं कर सकेगा। वहीं दूसरी ओर सरकार की नाक के नीचे जितने किसानों की जमीनें 5 एकड़ से कम है उनकी जमीनें नीलाम होने से सरकार की कलई खुल गई है।
राठौड़ ने कहा कि वर्तमान में राष्ट्रीयकृत, अधिसूचित व क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों से अवधिपार अल्पकालीन फसली ऋण लेने वाले लाखों किसान हैं। ऐसे में सिर्फ एक जगह ही नीलामी प्रक्रिया को निरस्त करना ऊंट के मुंह में जीरा समान कार्यवाही है। किसान हितैषी होने का ढोंग करने वाली कांग्रेस सरकार राज्य के विभिन्न जिलों में कर्ज नहीं चुका पाने के कारण जिन किसानों को जमीनें नीलाम होने का नोटिस मिला है उसे भी निरस्त कर किसानों को राहत प्रदान करनी चाहिए। क्योंकि सिर्फ दौसा ही नहीं बल्कि प्रदेश के विभिन्न जिलों में किसानों को जमीन नीलामी के नोटिस मिल रहे हैं जिस कारण से उनमें सरकार के प्रति गहरा आक्रोश व्याप्त है।
राठौड़ ने कहा कि राज्य सरकार ने किसान कर्जमाफी के दक्षिणी राज्यों के मॉडल का विस्तृत अध्ययन के लिए कल्ला कमेटी बनाई गई जिसकी करीब दर्जनभर मीटिंग भी हुई। कमेटी ने इन राज्यों का दौरा भी किया लेकिन कर्जमाफी को लेकर ठोस कार्ययोजना प्रस्तुत नहीं कर सकी और नतीजा ढाक के तीन पात रहा। राठौड़ ने कहा कि राजस्थान में विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सत्ता में आने के बाद 10 दिनों के भीतर किसान कर्जमाफी का वादा किया था लेकिन अब तक सरकार ने किसानों का कर्जमाफ नहीं किया। वहीं राज्य सरकार राष्ट्रीयकृत, अधिसूचित व क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों से 31 मार्च 2018 तक लिए गए अवधिपार फसली ऋण के लिए कभी लीड बैंक तो कभी केन्द्र सरकार को पत्र लिखकर किसान कर्जमाफी के अपने वादे से यू टर्न ले रही है। जबकि कांग्रेस सरकार ने अपने नीतिगत दस्तावेज जनघोषणा पत्र में इसका कहीं भी उल्लेख नहीं किया था कि वह अवधिपार अल्पकालीन फसली ऋण को माफ नहीं करेगी।