2014 की मोदी लहर में भी करौली, दौसा, नागौर और बाड़मेर में अन्य प्रत्याशियों के चलते हार-जीत का अंतर अन्य लोकसभा क्षेत्रों के मुकाबले कम रहे थे। करौली में भाजपा महज 27 हजार मतों से चुनाव जीत पाई थी। इसके अलावा दौसा में 45 हजार, नागौर में 75 हजार और बाड़मेर में 87 हजार रहा था। तीनों ही सीट पर निर्दलीय या अन्य दल के प्रत्याशियों से एक लाख से अधिक वोट हासिल किए थे। इस बार बीटीपी ने बांसवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में समीकरण बिगाड़ रखे हैं। पहले विधानसभा चुनाव में उसने दो सीट हासिल की, वहीं अब लोकसभा चुनाव में भी उसका प्रत्याशी खड़ा हुआ है।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि बांसवाड़ा में बीटीपी किस पार्टी के वोट काटे हैं, परिणाम उसी पर निर्भर रहेगा। जबकि अलवर में बसपा से मुस्लिम उम्मीदवार के मैदान में होने से कई इलाकों में कांग्रेस को नुकसान हो सकता है। इसी तरह धौलपुर-करौली में बसपा का जनाधार होने के चलते परिणाम चौकाने वाला हो सकता है। यह सीट 2009 में अस्तित्व में आई और इसके बाद हुए दोनों चुनाव में यहां कांग्रेस-भाजपा में नजदीकी मुकाबला रहा है।