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जयपुर

अभियान पार्ट- 02: कानून बनाकर भूले… फिर कैसे कम हो जेलों में भीड़?

तकनीक का सहयोग लेकर अदालतों में मुकदमे कम कर सकते हैं, वहीं उससे जेलों में अण्डरट्रायल वाले व्यक्तियों की संख्या में कमी भी आएगी। जहां जरूरत हो तो कानून में संशोधन का लाभ लेकर अदालत परिसर के बाहर सुनवाई भी की जाए। सरकार को अदालतों के लिए आवश्यक संसाधनों की व्यवस्था करनी चाहिए।

जयपुरAug 12, 2022 / 01:18 am

Shailendra Agarwal

jail

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जयपुर . साक्षी (गवाह) के अभाव में आपराधिक मामले की ट्रायल अटके नहीं, इसके लिए राज्य सरकार ने दंड प्रक्रिया संहिता को बदल दिया। इसके माध्यम से विधानसभा ने अदालत परिसर के बाहर दूसरे स्थान पर कोर्ट के जाने और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग से सुनवाई के प्रावधान जोड़कर अटके मामलों के निस्तारण की मंशा जाहिर की। लेकिन पांच साल से यह नई व्यवस्था सरकार व अदालत स्तर पर कागजों में ही अटकी है।
वर्ष 2017 में विधानसभा ने अदालतों को यह अधिकार दिया कि वे चाहें तो परिसर से बाहर जाकर सुनवाई कर सकती हैं या वीसी से न्याय प्रक्रिया को आगे बढ़ा सकती हैं। कुछ जगह वीसी से सुनवाई शुरू हुई है, लेकिन वह केवल रिमांड बढ़ाने तक ही सीमित है। स्थिति यह है कि ट्रायल 5 से 10 साल तक चलती रहती है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2020 में प्रदेश में ऐसे मामलों की संख्या 10% से अधिक थी, कोविड काल में स्थिति में ज्यादा बदलाव नहीं आया।
वर्ष 2020 में ट्रायल में लगा समय

ट्रायल कितने समय चली मामले(%में)

1 माह से कम 03.17

1 से 3 माह 05.05

3 से 6 माह 13.24

6 से 12 माह 20.21
1 से 3 साल 28.06

3 से 5 साल 18.50

5 से 10 साल 09.06

10 से अधिक 02.71

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