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जयपुर

धूम्रपान नहीं करते फिर भी हो सकता है लंग कैंसर

Lung Cancer : जयपुर . धूम्रपान करने वाले Men and Women में तो लंग Cancer का Risk बना ही रहता है साथ ही अब एक नई बात और देखने को मिल रही है। जो स्त्री और पुरुष Smoke नहीं करते हैं उनमें भी लंग कैंसर के काफी मामले सामने आ रहे हैं। डॉक्टरों के बीच भी यह चिंता का विषय बना हुआ है।

जयपुरJan 22, 2020 / 04:14 pm

Anil Chauchan

Lung Cancer

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Lung Cancer : जयपुर . धूम्रपान करने वाले पुरुष और महिलाओं ( Men and Women ) में तो लंग कैंसर ( Cancer ) का खतरा ( Risk ) बना ही रहता है साथ ही अब एक नई बात और देखने को मिल रही है। जो स्त्री और पुरुष धूम्रपान ( Smoke ) नहीं करते हैं उनमें भी लंग कैंसर के काफी मामले सामने आ रहे हैं। डॉक्टरों के बीच भी यह चिंता का विषय बना हुआ है।
एक जानकारी के अनुसार भारत में हर साल फेफड़े के कैंसर के 67 हजार नए मामले सामने आते हैं। काफी लंबे समय तक ऐसा माना जाता रहा था कि फेफड़ों का कैंसर सिर्फ उन पुरुषों को ही अपना शिकार बनाता है जो धूम्रपान करते हैं या धूम्रपान किया करते थे। लेकिन अब नए अध्ययनों से ऐसे संकेत भी मिले हैं कि धूम्रपान नहीं करने वाले भी लंग कैंसर के मरीज बन सकते हैं और इसमें कुछ तरह के लंग कैंसर युवाओं, धूम्रपान नहीं करने वालों और महिलाओं में ज्यादा आम हैं।
एक खास तरह का लंग कैंसर जिसे ‘नॉन-स्मॉल सैल लंग कैंसर (एनएससीएलसी) कहा जाता है, सभी तरह के लंग कैंसर के मामलों में 85 प्रतिशत पाया जाता है। ऐसे अधिकांश मामले देरी से पकड़ में आते हैं, क्योंकि शुरुआत में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते या दिखते भी हैं तो उन्हें दूसरा इंफेक्शन समझा जाता है। यही वजह है कि ऐसे में इलाज करना काफी चुनौतीपूर्ण बन जाता है।
2003 तक, एडवांस एनएससीएलसी से पीडि़त मरीजों के उपचार के लिए एकमात्र उपलब्ध विकल्प कीमोथेरेपी ही था और इससे मरीज का जीवन 8 से 10 महीने तक बचाया जा सकता था, लेकिन हाल में इस क्षेत्र में हुई प्रगति ने टारगेटेड थेरेपी के रूप में एक विकल्प उपलब्ध करवाया है। जो मरीज़ों को कीमोथेरेपी की कमियों से उबारकर उनके जीवन में लगभग 45 महीने और जोड़ सकता है।
इस संबंध में कइ डॉक्टरों से बात की गई। डॉक्टरों का कहना था कि हर महीने मेरे पास कम से कम दो से तीन ऐसी महिलाओं में फेफड़ों के कैंसर के मामले आते हैं जो धूम्रपान नहीं करती हैं। कुछ मामलों में, लंग कैंसर ट्यूमर्स के डीएनए में परिवर्तन हो चुका होता है, जिसे म्युटेशन कहते हैं। हम इन म्युटेशंस का पता लगा सकते हैं और फिर उसके मुताबिक टारगेटेड थेरेपी की सलाह भी दे सकते हैं, जो कि ऐसे मरीजों के मामलों में ज्यादा कारगर होती है। वैज्ञानिक शोधकायों के जरिए नए म्युटेशनों का पता लगाया जा रहा है और साथ ही, टारगेटेड थेरेपी की पूरी संभावनाओं का आकलन करने के लिए क्लीनिकल परीक्षण भी जारी हैं।
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