मां शैलपुत्री के दाहिने हाथ में त्रिशूल रहता है और बाएं हाथ में वे कमल-पुष्प धारण करती हैं। माता शैलपुत्री का वाहन वृषभ है। इसलिए उन्हें वृषभारूढ़ा भी कहा जाता है। पूर्व जन्म में वे दक्ष प्रजापति की पुत्री सती थीं। उनका विवाह शंकरजी से हुआ था। माता शैलपुत्री की आराधना करने से स्थिरता और शक्ति प्राप्त होती है। युवतियों, महिलाओं के लिए उनकी पूजा करना विशेष रूप से मंगलकारी होता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित सोमेश परसाई बताते हैं कि सुबह शुभ मुहूर्त में कलश स्थापना के बाद दुर्गा पूजा का संकल्प लेकर शैलपुत्री स्वरूप की विधिपूर्वक पूजा करें। घी का दीपक जलाकर उनकी आरती उतारें। माता को सिंदूर, धूप, पुष्प अर्पित करें. इसके बाद दुर्गासप्तशती का पाठ करें या माता के मंत्र का जाप करें। माता शैलपुत्री को सफेद फूल पसंद हैं। उन्हें गाय का घी अर्पित करना चाहिए। इससे आरोग्य प्राप्त होता है।
माता शैलपुत्री की आराधना के लिए मंत्र 1.
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम: 2.
बीज मंत्र— ह्रीं शिवायै नम: 3.
शिवरूपा वृष वहिनी हिमकन्या शुभांगिनी.
पद्म त्रिशूल हस्त धारिणी रत्नयुक्त कल्याण कारिनी. 4.
वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम् .
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम: 2.
बीज मंत्र— ह्रीं शिवायै नम: 3.
शिवरूपा वृष वहिनी हिमकन्या शुभांगिनी.
पद्म त्रिशूल हस्त धारिणी रत्नयुक्त कल्याण कारिनी. 4.
वन्दे वांच्छित लाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम् .
वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्॥