भारत 2000 और 2015 के बीच मैंग्रोव वनों के क्षेत्र में नौवें स्थान पर है, लेकिन नुकसान की दर वैश्विक औसत की केवल आधी है। एक अंतरराष्ट्रीय अध्ययन के अनुसार जिसका अर्थ है कि भारत अपने मैंग्रोव वनों को अन्य देशों की तुलना में काफी बेहतर बनाए रखने में सक्षम है। मैंग्रोव सामान्यतः पेड़ व पौधे होते हैं, जो खारे पानी में तटीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं। ये उष्णकटिबन्धीय और उपोष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में मिलते हैं।
संयुक्त राज्य अमरीका के मैसाचुसेट्स में स्थित एक थिंक टैंक, वुड्सहोल रिसर्च सेंटर (डब्ल्यूएचआरसी) की ओर से इस महीने के शुरू में प्रकाशित अध्ययन ने सैटेलाइट नक्शे पर देखा कि भारत के 4,52,676 हेक्टेयर (हेक्टेयर) मैंग्रोव वनों (दुनिया में10वां सबसे बड़ा मैंग्रोव कवर) में से देश ने इन 15 वर्षों में 3,957 हेक्टेयर या 0.87% खो दिया। भारतीय सरकार के अनुमानों ने मैंग्रोव वनों की सीमा 4,92,100 हेक्टेयर (100 हेक्टेयर एक वर्ग किलोमीटर के बराबर) पर रखी है। वैश्विक स्तर पर, इन 15 वर्षों में मैंग्रोव वनों का 1.67% खो गया था। जहां इंडोनेशिया ने सबसे अधिक 1,15,000 हेक्टेयर मैंग्रोव कवर को खोया वहीं आलोच्य अवधि के दौरान मलेशिया, म्यांमार, ब्राजील और थाईलैंड से भी अधिकतम कवर खोने की सूचना थी। अध्ययन के मुख्य लेखक जॉन सैंडमैन ने कहा, ‘हमने पाया कि भारतीय मैंग्रोव वनों में से एक फीसदी से भी कम (4,000 हेक्टेयर) वनों की कटाई 2000 और 2015 के बीच हुई थी। ‘यह दर वैश्विक औसत की आधी है, जिसका अर्थ है कि 2000 के बाद शेष मैंग्रोव वनों की रक्षा में भारत बेहतर है। पश्चिमी बंगाल में सुंदरबन के ऐतिहासिक वनों की कटाई मुख्य रूप से चावल उगाने के लिए उपजाऊ मिट्टी के लिए थी। इसी तरह मुंबई में शहर बसाने के लिए और दक्षिणी क्षेत्रों में प्राकृतिक आपदाओं ने इन्हें हानि पहुंचाई।
मैंग्रोव वन विनाश के कारण 2000 से 2015 के बीच वैश्विक स्तर पर 122 मिलियन टन कार्बन रिलीज हुआ था। 2000 से 2015 के बीच 3,957 हेक्टेयर मैंग्रोव वनों की कटाई के चलते भारत कार्बन स्टॉक हानि की मात्रा के लिए दुनिया भर में आठवें स्थान पर रहा।
हालांकि, भारत मैंग्रोव वनों की कटाई को कम करने के अपने प्रयासों में प्रभावी रहा है, देश वैश्विक स्तर पर मैंग्रोव वनों में मृदा कार्बन भंडारण की मात्रा के लिए शीर्ष 20 देशों में से एक है।
क्या है कार्बन भंडार?कार्बन स्टॉक वन पारिस्थितिक
तंत्र में संग्रहीत कार्बन की मात्रा को संदर्भित करता है। यह उन ग्रीनहाउस गैसों के प्रभाव को कम करने में मदद करता है, जो ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार हैं। मृदा कार्बन – मिट्टी में संग्रहीत कार्बन की मात्रा – मिट्टी की उर्वरक क्षमता का आधार है।