भगवान मार्तण्ड सूर्यदेव का ही दूसरा नाम है। मान्यता है कि इसी दिन सूर्यदेव के अंश के रूप में भगवान मार्तंड की उत्पत्ति हुई थी। इसीलिए इसे मार्तण्ड सप्तमी कहा जाता है। सूर्यदेव की अनुकम्पा प्राप्त करने के लिए यह व्रत उत्तम कहा गया है। इस दिन सूर्यपूजा से कई गुना पुण्यफल की प्राप्ति होती है। इस दिन हवन करने और गोदान करने से अक्षय फल प्राप्त होते हैं। सूर्यदेव प्रत्यक्ष देवता हैं। ऋग्वेद में तो सूर्य को सर्वाधिक शक्तिशाली देवता के रूप में उल्लेखित किया गया है।
ज्योतिषाचार्य पंडित नरेंद्र नागर के अनुसार मार्तण्ड सप्तमी व्रत सूर्यदेव को बहुत प्रिय है। इस दिन नित्यकर्म और स्नानादि के बाद सूर्य को जल अर्पित करना चाहिए, इसके बाद सूर्यदेव का ध्यान करते हुए व्रत और पूजा का विधिवत संकल्प लेना चाहिए। फिर मार्तण्ड नाम से सूर्यदेव की विधिविधान से पूजन करना चाहिए। पूजा के उपरान्त गाय को भोजन कराना चाहिए या गौशाला में दान करना चाहिए। इस प्रकार सालभर प्रत्येक मास की शुक्ल सप्तमी का व्रत करके उद्यापन करना चाहिए।
सूर्यदेव को सप्तमी तिथि विशेष प्रिय है। जब देवी-देवताओं को तिथियां बांटी गई तब सप्तमी तिथि का स्वामित्व सूर्यदेव को दिया गया। भगवान मार्तंड के रूप में वे अंड के साथ ही उत्पन्न हुए और अंड में रहते हुए ही उन्होंने वृद्धि प्राप्त की थी। यही कारण वे मार्तण्ड के नाम से प्रसिद्ध हुए। ज्योतिषाचार्य पंडित जीके मिश्र के मुताबिक भविष्य पुराण में भी इसका उल्लेख किया गया है। भविष्य पुराण के अनुसार सप्तमी तिथि को ही भगवान् सूर्य का आविर्भाव हुआ था।