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जयपुर

राजनीति का अखाड़ा रही मेट्रो पर कैग की टिप्पणी का तडक़ा

मेट्रो से नुकसान के सिवा कुछ नहीं मिला यात्री भार नहीं बढ़ा, यातायात की समस्या बरकरार, हजारों करोड़ खर्च के बावजूद सरकार को उठाना पड़ रहा है करोड़ों का घाटा

जयपुरSep 10, 2018 / 12:47 am

Shadab Ahmed

jaipur metro

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जयपुर. राजधानी जयपुर में करीब तीन हजार करोड़ रुपए से अधिक की मेट्रो परियोजना राजनीति का अखाड़ा रही है। अब भारत के नियंत्रक महालेखापरीक्षक (कैग) ने इस परियोजना को दोषपूर्ण और घाटे का सौदा बता कर इस पर तडक़ा लगा दिया है। मेट्रो शुरू होने से अब तक इससे शहर के यात्रियों की दिक्कतें समाप्त नहीं हुई और न ही यातायात समस्या। इसके साथ सरकार अब तक करीब पांच सौ करोड़ रुपए का नुकसान भी इस परियोजना के चलते उठा चुकी है। मेट्रो को लेकर कांग्रेस-भाजपा भले ही एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप करती रही हो, लेकिन कैग की रिपोर्ट से दोनों ही दलों की सरकारें मेट्रो परियोजना को लेकर कठघरे में खड़ी नजर आ रही है। जहां कांग्रेस ने खर्चीली योजना को शुरू किया, वहीं भाजपा ने विपक्ष में रहते तो विरोध किया, लेकिन सरकार बनने के कुछ दिन बाद ही इस परियोजना को आगे बढ़ा दिया। ऐसे में परकोटे में ऐतिहासिक धरोहर और बड़ी संख्या में प्राचीन मंदिरों को नुकसान पहुंचाया गया।

औचित्यहीन निर्णय
कैग ने खासतौर पर मेट्रो के प्रथम फेज में चयनित मानसरोवर से चांदपोल कॉरीडोर चयन को लेकर सवाल खड़े किए हैं। रिपोर्ट में बताया गया कि 2014 और 2021 में सीतापुरा से अंबाबाड़ी कॉरीडोर का यात्रीभार मानसरोवर से बड़ी चौपड़ के मुकाबले अधिक था। इसके बावजूद सरकार ने पहले फेज में गलत कॉरीडोर का चयन किया। सरकार ने इस मामले में तर्क दिया कि प्रति किलोमीटर कम लागत वाले कॉरीडोर का चयन किया गया, जिसे कैग ने नहीं माना। -पत्रिका की मुहिम पर लगी मोहर राजस्थान पत्रिका ने मेट्रो परियोजना के पहले चरण से लेकर परकोटे में इसके विस्तार को लेकर समाचार अभियान चलाया था। कैग की रिपोर्ट ने पत्रिका द्वारा उजागर की गई सच्चाई पर मोहर लगा दी है। कैग ने मेट्रो रेल परियोजना को फिजुलखर्ची करार दिया है। इसके साथ ही कांग्रेस शासन के समय शुरू हुई इस खर्चीली योजना को भाजपा सरकार के जारी रखने पर उसे भी सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है।

पत्रिका ने उठाए सवाल और कैग ने की पुष्टि

जयपुर जैसे शहर के लिए मेट्रो ठीक नहीं-कैग ने बताया कि मेट्रो के लिए सरकार ने झूठी रिपोर्ट पेश की
अधिक खर्चीला होने के साथ इससे लोगों को यातायात समस्या से निजात नहीं मिलेगी-मानसरोवर से चांदपोल तक करीब 3100 करोड़ खर्च करने के बावजूद लोगों को नहीं मिला फायदा
फिजुलखर्ची-कैग ने परियोजना में अलग-अलग जगह खामी बताकर अब तक करीब पांच सौ करोडं़ का नुकसान बताया
सरकार का झूठ पर झूठ

कैग की रिपोर्ट में बताया गया कि राजस्थान में मेट्रो की आवश्यकता पर जून 2006 में सरकार ने एमओयूडी के अफसरों से चर्चा की थी। इसमें डीएमआरसी के तत्कालीन प्रबंध निदेशक श्रयुत श्रीधरन भी मौजूद थे। इस बैठक में यह ध्यान दिलाया गया था कि अनुमानित यात्रीभार के चलते जयपुर में 2025 तक मेट्रो की आवश्यकता नहीं है। जबकि परियोजना के अनुमोदन के लिए अगस्त 2009 में राज्य कैबिनेट नोट में यह बताया गया कि श्रीयुत श्रीधरन ने जयपुर के लिए मेट्रो को उपयुक्त बताते हुए डीएमआरसी ने डीपीआर की तैयारी के लिए सहमति दे दी है। भारत सरकार ने अप्रेल 2010 में इंगित किया था कि जिन शहरों की यातायात का 50 से 60 फीसदी हिस्सा सार्वजनिक परिवहन का हो, वही मेट्रो योजना लागू की जाए। जयपुर में सार्वजनिक परिवहन का हिस्सा 19 फीसदी ही था। राजस्थान सरकार ने इसमें भी खेल किया और अप्रेल 2010 में मेट्रो की आवश्यकता को उचित ठहराते हुए केन्द्र सरकार को भेजी डीपीआर में यातायात अनुमान उचित बता दिया।

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