एलिस सूमो एक ऐसी मिडवाइफ या दाई हैं, जिनके
प्यार , समर्पण और देखभाल ने ‘एलिस’ नाम के कस्बे को जन्म देने में मदद की है क्योंकि एलिस के इन्हीं गुणों से मुरीद होकर कृतज्ञ मांओं ने अपने 1,000 बच्चों का नाम एलिस रखा है।
लीबेरिया का मॉन्टसेराडो कस्बा करीब तीन दशकों से गृह युद्ध का शिकार है और अब वहां इबोला का खतरा भी मंडरा रहा है, ऐसी जगह पर एलिस, जिनके नाम का मतलब शांति है, गर्भस्थ शिशुओं को सुरक्षित धरती पर लाने के लिए हर खतरे को झेल रही हैं। स्थानीय लोग उनके सेवाभाव के इतने कायल हैं कि देश के जिस उत्तरी-पश्चिमी इलाके में वह काम करती हैं, वहां 1000 बच्चों का नाम एलिस ही रखा गया है, इसमें लडक़े भी शामिल हैं, जिनका नाम एलेक्स या इलिस है।
आज 48 साल की हो चुकीं एलिस ने 1990 में गृह युद्ध के दौरान पहली बार सडक़ किनारे बंदूक नोंक पर एक बच्चे के जन्म में मदद की थी। उस समय तक वह प्रशिक्षित मिडवाइफ भी नहीं थीं लेकिन एक गर्भवती महिला पर बंदूक तनी देख कर वह ऐसा करने से खुद को रोक नहीं सकीं। बंदूकधारी उस महिला को इसलिए मारना चाहता था क्योंकि वह
प्रसव पीड़ा से तेज-तेज चीख रही थी।
एलिस के मुताबिक, ‘वह महिला दर्द से चीख रही थी। एक बंदूकधारी शख्स वहां चिल्ला रहा था कि कोई है, जो मदद कर सकता है। हम इस महिला को मार देंगे क्योंकि हम उसकी चिल्लाहट नहीं सुन सकते। तब मैंने कहा कि उसे मत मारो, मैं उसकी डिलीवरी करूंगी। उस समय तक मैं प्रशिक्षित भी नहीं थी। महिला का चिल्लाना जारी था। बंदूकधारी मुझसे बोला कि अगर तुमने सही डिलीवरी नहीं की और इस महिला को कुछ हो गया तो वह मुझे मार देगा। तब मैंने कहा कि मुझे मत मारो, मैं अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूंगी। मैं डरी हुई थी लेकिन मैंने सही डिलीवरी की।’
एलिस याद करती हैं, वहां कोई रेजर भी नहीं था तो उन्होंने कांच की एक बोतल फोड़ कर उसकी धार से बच्चे की नाल काटी थी। डिलीवरी के बाद बच्चा एकदम चुप था तो उस शख्स ने कहा कि बच्चा क्यों नहीं रो रहा है।
उसने एलिस को जान से मारने की धमकी दी। एलिस ने तुरंत बच्चे को चांटा मारा और वह बच्चा रोने लगा। उसके बाद उस आदमी ने उन्हें जाने दिया। यह उनकी हजारों सफल डिलीवरीज में से पहली डिलीवरी थी और सबसे ज्यादा खुशी की बात एलिस के लिए यह है कि इतनी डिलीवरीज में से एक में भी मां या बच्चे की मौत प्रसव के दौरान नहीं हुई। जबकि कई बार उन्हें मोबाइल टेलीफोन की टॉर्च की रोशनी तक में डिलीवरी करानी पड़ी थी। वहीं 2014-15 में इबोला क्राइसेस के दौरान एलिस की चंद मिड वाइव्स में से एक थीं, जो लगातार काम कर रही थीं। एलिस के मुताबिक, उस दौरान मेरे पड़ोसी मुझसे डरने लगे थे, वे अपने बच्चों को मेरे पास तक नहीं आने देते थे। मुझे बुरा लगता था लेकिन मुझे इसे स्वीकार करना पड़ा। मैं भी अक्सर अपने बच्चों से कहा करती थी, ‘मेरे पास मत आओ। मुझसे दूर रहो। इबोला वायरस ने बहुत सी चीजों को तोड़ दिया था।’
उस दौरान बहुत भारी सूट पहन कर डिलीवरी करानी पड़ती थी, जिससे उन्हें जलन और खुजली हो जाती थी। कई बार तो ऐसा होता था कि गर्भवती महिला के साथ वह केवल इकलौती शख्स होती थीं। एलिस कहती हैं कि वह पिछले 30 साल से दाई का काम कर रही हैं और किसी को मां बनते हुए देखना उनके लिए सबसे सुखद अनुभूति है।
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