फैक्ट्रियां और कारखाने बंद होने से इनके सामने अपना और अपने परिवारों का पेट भरने का भी संकट खड़ा हो गया,जिसके चलते मजदूरों का पलायन शुरू हो गया है। पिछले तीन दिनों लगातार पलायन कर रहे हैं। इनके साथ इनके छोटे-छोटे बच्चे भी हैं।
शहर के सीकर रोड, अजमेर रोड, आगरा रोड और दिल्ली रोड पर ये लोग पैदल ही अपने घरों को लौटने को मजबूर हैं। ये मजदूर उत्तर प्रदेश, बिहार, भरतपुर, दिल्ली बरेली, आगरा जैसे शहरों से हैं।
कोरोना से तो नहीं भूख से मर जाएंगे
शुक्रवार को भरतपुर और आगरा पैदल जा रहे मजदूरों से बात की गई तो उनका कहना था कि कोरोना से तो नहीं लेकिन भूख से मर जाएंगे, क्योंकि फैक्ट्रियों और कारखानों में दिहाड़ी मजदूरों के तौर काम करते थे। पिछले सात दिन से सब बंद हैं।
खाने को कुछ नहीं है, कोई मदद भी नहीं कर रहा है, पहले कहा गया था कि 31 मार्च तक लॉकडाउन रहेगा फिर इसे 15 अप्रेल तक बढ़ा दिया। अब आगे कितना लंबा और चलेगा कुछ पता नहीं। ऐसे में कोरोना वायरस से तो नहीं लेकिन भूख से मर जाएंगे। न बसें चल रहीहै और न ही ट्रेनें, इसलिए पैदल ही अपने घरों को जा रहे हैं। घर भी कब पहुंच पाएंगे पता नहीं।
देना चाहिए था समय
पलायन कर मजदूरों का कहना है कि सरकार को लॉकडाउन से पहले दूसरे प्रदेशों और जिलों से आए मजदूरों को वापस अपने घर जाने के लिए एक-दो दिन का समय देना चाहिए था। अचानक से ही ट्रेनें और बसें बंद करने का फैसला ले लिया, अब हमारे पास केवल पैदल ही जाने का रास्ता बचा है। पैदल भी जा रहे हैं तो पुलिस परेशान कर रही है।
न सरकार मदद कर रही है न एनजीओ
वहीं मजदूरों का पलायन रोकने के लिए न तो सरकार कोई ठोस कदम उठा रही और न ही जन कल्याण के लिए काम करने वाले स्वयंसेवी संगठन। ऐसा भी नहीं कि मजदूरों की पलायन की खबरें सरकार और जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारियों तक नहीं पहुंच पा रही हो। देखना ये है कि इनके पलायन को रोकने के लिए सरकार क्या बड़े कदम उठाती है।