गुर्जर सहित 5 जातियों को 5 प्रतिशत आरक्षण के लिए राज्य सरकार 2008 और फिर 2015 में कानून बना चुकी है। एसबीसी आरक्षण के लिए दोनों ही कानून आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से अधिक होने के कारण सफल नहीं हो पाए। विधि विशेषज्ञों के अनुसार संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार आरक्षण सामान्य परिस्थितियों में 50 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकता। विशेष परिस्थिति साबित करने के लिए पिछड़ा वर्ग आयोग की स्पष्ट सिफारिश आना आवश्यक है। अतिरिक्त महाधिवक्ता रहे वरिष्ठ अधिवक्ता आरएन माथुर ने प्रस्तावित कानून को लेकर पत्रिका टीवी से बातचीत के दौरान कहा भी है कि आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत से पार करने के लिए व्यापक सर्वे की आवश्यकता है।
एसबीसी आरक्षण के लिए 2008 में पहली बार कानून बना। उसमें आरक्षण के दायरे में आने वाले सभी वर्गों के लिए एक ही कानून में प्रावधान किया गया। उसके बाद 2015 में 50 प्रतिशत की सीमा को देखते हुए एसबीसी के लिए 5 प्रतिशत और आर्थिक पिछड़ा वर्ग के लिए 14 प्रतिशत आरक्षण के लिए अलग-अलग कानून लाए गए। दिसम्बर 2016 में यह कानून भी हाईकोर्ट में नहीं टिक पाया, तो अब अन्य पिछड़ा वर्ग का कोटा 21 से बढ़ाकर 26 प्रतिशत करने की कवायद की जा रही है।