अदाकारी ‘झक्कास’
कहानी सिंपल है। पटकथा एंगेजिंग तो है, पर बीच-बीच में हिचकोले खाती है। इससे जायका खराब होने लगता है। पहले हाफ में सपाट तरीके से आगे बढ़ती स्टोरी इंटरवल के बाद सही ट्रैक पकड़ती है और भावनात्मक भी हो जाती है। ‘गुड न्यूज’ बनाने वाले राज मेहता का निर्देशन सधा हुआ है, पर कहानी को उतने बेहतर ढंग से परदे पर नहीं दिखा पाए। हास्य और गंभीरता का तालमेल बनाए रखने में उनसे चूक हो गई। गीत-संगीत औसत दर्जे का है। एडिटिंग लचर है, जिसका परिणाम फिल्म की लंबाई है, जो थोड़ी कतरी जानी चाहिए थी। सिनेमैटोग्राफी एवरेज है।
वरुण धवन की परफॉर्मेंस सराहनीय है। हालांकि कुछ असाधारण नहीं कर पाए। कियारा आडवाणी की अदाकारी में मूवी दर मूवी निखार आ रहा है। अनिल कपूर की एनर्जी और रोल को जीने का अंदाज ‘झक्कास’ है। नीतू कपूर की स्क्रीन प्रजेंस ‘सुकून’ देती है। मनीष पॉल की कॉमिक टाइमिंग अच्छी है। वह हंसने के कई मौके देते हैं। प्राजक्ता कोली अपनी भूमिका में जंचती हैं। कुल मिलाकर ‘जुग जुग जियो’ एक औसत फिल्म है, इसलिए पूरे विश्वास से यह कहने का मौका नहीं देती कि ‘जुग जुग जियो’।