.. तो इसलिए किया था आरएलपी से गठबंधन
नागौर सीट को लेकर जानकारों का कहना है कि इस सीट पर बीजेपी को जीत की राह मुश्किल लग रही थी। जिसके बाद पार्टी के आला नेताओं ने हनुमान बेनीवाल की लोकप्रियता को देखते हुए इस सीट पर खास फोकस किया और इसके बाद बेनीवाल की आरएलपी के साथ गठबंधन किया गया।
बेनीवाल के भाजपा में शामिल होने से शेखावाटी में बीजेपी को काफी फायदा मिला और जाट मतदाताओं को लुभाने के लिए भाजपा का ये कदम कारगर साबित हुआ। जानकारों के मुताबिक बेनीवाल के भाजपा के साथ आने का असर नागौर के अलावा जोधपुर, बाडमेर, राजसमंद, जालोर, पाली और अजमेर सीट पर भी पड़ा। चुनाव के दौरान कई जगहों पर बेनीवाल ने भाजपा प्रत्याशियों के पक्ष में प्रचार भी किया था। वहीं बेनीवाल को भी राष्ट्रीय स्तर अपनी पार्टी को जमाने के लिए लोकसभा का चुनाव लडना जरूरी था। अब एनडीए के घटक दल के रूप में वे राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके हैं।
कभी वसुंधरा के धुर विरोधी रहे तेज तर्रार नेता और युवाओं के बीच लोकप्रिय हनुमान बेनीवाल राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) बनाकर मैदान में जीत हासिल कर चुके हैं। हनुमान बेनीवाल पहली बार 2008 में भाजपा से ही विधायक रहे, लेकिन बाद में भाजपा नेताओं के खिलाफ बयानबाजी और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से मतभेदों के चलते उन्हें पार्टी से बाहर कर दिया गया था। इसके बाद बेनीवाल 2013 में निर्दलीय आैर 2018 में अपनी पार्टी आरएलपी से चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचे।