बदलते क्लाइमेट के हिसाब से सब्जियों पर रिसर्च की जरूरत
जयपुर क्लाइमेट चेंज से कृषि क्षेत्र की चुनौतियां बढ़ गई हैं। हवा और मिट्टी में नमी की कमी होने लगी है। ऐसे में कृषि वैज्ञानिकों को बदलते क्लाइमेट के हिसाब से सब्जियों की नई किस्मों के इजाद के लिए अनुसंधान करना चाहिए। सब्जी रोजाना की जरूरतों से जुड़ी हुई है। उद्यानिकी वैज्ञानिक और कृषि वैज्ञानिक भर्ती मंडल के पूर्व अध्यक्ष डॉ कीर्ति सिंह ने यह बात शुक्रवार को दुर्गापुरा स्थित कृषि अनुसंधान संस्थान में सब्जियों की 36 वीं राष्ट्रीय कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में कही।
इस अवसर पर सिंह ने कहा कि राजस्थान में भी सब्जियों की विविधता का भंडार है। यहां पानी की कमी के बावजूद सब्जियों की जलवायु अनुकूलित किस्मों के विकास की प्रचुर संभावनाए हैं। देश में भारत चीन के बाद सब्जियों का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। कृषि वैज्ञानिकों को बदलती जलवायु के अनुरूप नई नई किस्में विकसित करनी चाहिए। ताकि किसानों की आमदनी दोगुना करने के लक्ष्य को भी पूरा किया जा सके।
इस कार्यशाला में देशभर से सब्जियों पर अनुसंधान का काम करने वाले कृषि वैज्ञानिक हिस्सा ले रहे हैं। इस दौरान शहरी सब्जी उत्पादन के अन्तर्गत छत पर सब्जियों की खेती (रूफ टफ फार्मिगं) योजना की जानकारी भी दी गई। विश्वविद्यालय के डॉ योगेश शर्मा ने बताया कि कार्यशाला में परियोजना समन्वयक डॉ. ए.बी. राय ने राष्ट्रीय सब्जी फसल अनुसंधान संस्थान का वार्षिक प्रतिवेदन (2016—17) प्रस्तुत किया।
चीन के बाद भारत का स्थान इस अवसर पर जोबनेर स्थित कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. पी. एस. राठौड़ ने कहा कि भारत में विश्व की 15 प्रतिशत सब्जियों का उत्पादन किया जाता है। पिछले पांच सालों में सब्जियों का उत्पादन तेजी से बढ़ा है। वर्तमान में देश में 178 मिलियन टन से अधिक सब्जियों का उत्पादन हो रहा हे। डॉ. राठौड़ ने बताया कि संरक्षित सब्जी खेती के जरिए किसानों की आय को दोगुना किया जा सकता है।
रिसर्च को बढ़ावा देने की जरूरत कार्यशाला में वाराणसी स्थित राष्ट्रीय सब्जी फसल अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. बिजेन्द्र सिंह ने कहा कि सब्जियों की नई किस्मों का विकास हो रहा है। लेकिन और काम करने की जरूरत भी है। सब्जियों का उत्पादन बढ़ रहा है। सब्जियों के बीजों का उत्पादन के साथ ही जलवायु परिवर्तन, जल बजट, वर्टिकल सब्जी खेती पर रिसर्च को बढ़ावा देने की जरूरत है।
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