जयपुर नगर निगम की ही बात की जाए तो निगम के पास अभी तक ये डेटा ही नहीं है कि शहर में कितनी संपत्तियां है। पूर्ववर्ती सरकार के समय जिस कंपनी को सर्वे का ठेका दिया गया था, वह काम में फेल रही। इसके बाद दोबारा एक एजेंसी को यह सर्वे का काम सौंपा गया है। संपत्तियों की संख्या नहीं होने की वजह से इस वित्तीय वर्ष में निगम महज 73 लाख रुपए की लीज वसूली कर पाया है। अगर लीज वसूली में निगम तेजी लाए तो करोड़ों रुपए की कमाई हो सकती है।
जेडीए के खजाने में आ जाएंगे 200 करोड़ आर्थिक तंगी से जूझ रहा जेडीए भी लीज वसूली में फिसड्डी ही साबित हुआ है। कमाई बढ़ाने के लिए प्रत्येक जोन में 100 बड़े बकायादारों की सूची बनाई गई, लेकिन वसूली नहीं हो पाई। अगर जेडीए लीज वसूली में सख्ती करे तो खजाने में 200 करोड़ रुपए आ सकते हैं।
ये है प्रावधान है नगरपालिका अधिनियम 1959 के तहत सबसे पहले शहरी निकायों में लीज वसूली का प्रावधान किया गया था। इसके बाद नगरीय भूमि निस्तारण नियम 1974 में न्यास और प्राधिकरण में लीज राशि वसूली का नियम लागू किया गया। आवासीय भूखंड के लिए आवंटन दर का 2.5 प्रतिशत बतौर लीज राशि वसूली जाती है।
संपत्ति हो सकती है अटैच लीज जमा नहीं कराने पर भूखंड मालिक के खिलाफ कार्रवाई का प्रावधान है। इसमें बैंक खाते व अन्य संपत्ति अटैच की जा सकती है। भूखंड का आवंटन निरस्त किया जा सकता है। लेकिन व्यापक प्रचार—प्रसार नहीं होने की वजह से भवन मालिक राशि जमा कराने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं।
फ्री होल्ड की सुविधा भी नहीं भुना पाए निकाय किसी भी भूखंड को 99 साल की लीज पर दिया जाता है। हर साल लीज जमा कराना जरूरी हैं। आगामी 8 साल की अग्रिम राशि जमा कराने पर 99 साल की लीज जमा कराने से मुक्ति मिलती है। इसी तरह 10 साल की लीज जमा कराने पर फ्री होल्ड का पट्टा दिया जाता है और भवन मालिक 99 साल की लीज से मुक्त हो जाता है। लेकिन निकाय इन प्रावधानों का भी लाभ नहीं उठा पाए।