जयपुर के त्रिवेणी की ओर से संचालित कौशल्यादास की बगीची, नृसिंह मंदिर पुरानी बस्ती, ढेहर का बालाजी, सियारामदास की बगीची सहित अन्य मंदिरों में रामधुनी की जा रही थी। शहर से इनका काफी जुड़ाव रहा। आध्यात्मिक क्षेत्र में सावन और भादवे में झूला महोत्सव आयोजित करवाए, हर रविवार को त्रिवेणी मंडल गुरुकृपा की ओर से भाग्वत नाम का प्रचार प्रसार शुरू किया। वहीं रामनाम का वोट बैंक के लिए पहल की। नारायण दास के देवलोकगमन का समाचार सुनकर छोटी काशी में विभिन्न मंदिरों के महंतों ने संवेदना व्यक्त कर अपने संस्मरण साझा किए। उन्होंने कहा कि नारायण दास का शहर से विशेष नाता रहा है, कई धार्मिक आयोजनों के साथ सामाजिक उत्थान के कार्य यहां करवाए। वहीं संत परंपरा को छोटी काशी में जीवंत रखा। बड़ी संख्या में उनके भक्त शनिवार को त्रिवेणी धाम पहुंचें।
खुलवाया संस्कृत विश्वविद्यालय
सनातन धर्म के वैदिक उत्थान के लिए देववाणी संस्कृत को बढ़ावा देने के लिए शिक्षा के क्षेत्र में जयपुर में जगदगुरु रामानंदाचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय (मुहाना)में बनवाया। वहीं सूरजपोल अनाजमंडी सहित अन्य जगहों पर वाणिज्यक्रम के लिए उपक्रम साधन दिए। किसी भी आयोजन से पूर्व उन्हें आमंत्रित किया जाता रहा। चिमनपुरा में बाबा भगवानदास राजकीय कृषि महाविद्यालय, बाबा भगवानदास राजकीय पीजी महाविद्यालय, शाहपुरा में छात्राओं के लिए बाबा गंगादास राजकीय पीजी कॉलेज और त्रिवेणी में वेद विद्यालय की स्थापना और संचालन में अमिट योगदान दिया। स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी जयपुर और निकटवर्ती जिलों में कई अस्पताल भी संचालित किए जा रहे हैं। त्रिवेणी धाम में विश्व की प्रथम पक्की 108 कुंडों की यज्ञशाला का निर्माण करवाया।
इन्होंने जताई संवेदना
-आचार्य पीठ सरस निकुंज के शुक सम्प्रदायाचार्य पीठाधीश्वर अलबेली माधुरी शरण ने कहा कि संत के गमन से देश और प्रदेश ने महान विभूति को खो दिया। उन्होंने संतो की गरिमा को बढ़ाया, सत्संग हरिनाम महिमा का विस्तार किया। मुझे हमेशा उनसे करुणा वात्सालय का स्नेह मिला है।
-आराध्य देव गोविंद देव जी मंदिर के महंत मानस गोस्वामी ने बताया कि नारायणदास ने ठाकुर जी के सानिध्य में कई कार्यक्रम में हिस्सा लिया। उन्होंने हमेशा जनकल्याण को आगे बढ़ाया। उनके द्वारा संतों, समाज के लिए कार्यों को गिना पाना संभव नहीं । वह अद्भूत छवि के व्यक्त्वि थे जिनकी छति पूर्ति संभव नहीं।
-मानसरोवर न्यूसांगानेर रोड स्थित गुरुकुल वेदाश्रम के महामंडलेश्वर मनोहर दास ने कहा कि महाराज का व्यवहार हमेशा सहज रहा। गुरुकुल वेदाश्रम की नींव महाराज के करकमलों से लगाई।
-पुरानी बस्ती स्थित नृसिंह मंदिर बंशीवाले के महंत अवधेशदास ने कहा कि नारायण दास जी ने छोटी काशी में संत परंपरा को जीवंत रखा।
-गलता पीठाधीश्वर अवधेशाचार्य ने कहा कि संत के निधन से जो स्थान खाली हुआ है उनकी पूर्ति करना असंभव है।
-कौशल्य दास की बगीची के महंत रामचरण, सियाराम बगीची महंत सियाराम, नहर के गणेश मंदिर महंत जय शर्मा ने कहा कि हमें उनके दिखाए मार्ग का अनुसरण करना चाहिए। उन्होंने त्याग तपस्या से संत समाज में सर्वोच्च स्थान प्राप्त किया था। वह एक तपस्वी संत थे।
नारायणदास का अंतिम संस्कार रविवार को सुबह श्रद्धालुओं के दर्शन के बाद दोपहर 12.30 बजे किया जाएगा। अंतिम संस्कार से पूर्व 11 बजे श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ रखा जाएगा। इसके बाद शोभायात्रा के रूप में गाजे-बाजे के साथ बालाजी के छतरी के पास पास उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा। यह निर्णय त्रिवेणी में संत-महंतों के निर्देशन में लिया गया है।