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जयपुर

नर्स बन रही हैं स्वास्थ्य-सिपाही

Nurses : जयपुर . अक्सर Sick Children का जीवन बचाने का श्रेय Doctors को मिलता है। लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि बाल स्वास्थ्य सुधारने में हमारी Nurses भी बहुत अहम भूमिका निभाती हैं। Pregnancy के हर चरण पर – जन्म से पहले व बाद – नर्सें महिलाओं व बच्चों को अहम स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करती हैं।

जयपुरDec 01, 2019 / 05:35 pm

Anil Chauchan

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nurses : जयपुर . अक्सर बीमार बच्चों ( Sick children ) का जीवन बचाने का श्रेय डॉक्टरों ( doctors ) को मिलता है। लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि बाल स्वास्थ्य सुधारने में हमारी नर्सें ( Nurses ) भी बहुत अहम भूमिका निभाती हैं। गर्भावस्था के हर चरण पर – जन्म से पहले व बाद – नर्सें महिलाओं व बच्चों को अहम स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करती हैं। प्रसव का मामला पेचीदा होने से नवजात बच्चा कई रोगों का शिकार हो सकता और यहां तक कि उसकी मौत भी हो सकती है। ऐसी परिस्थितियों में नर्सें ही वह स्वास्थ्य-सिपाही हैं जो गर्भावस्था के दौरान आई स्वास्थ्य-संबंधी जटिलताओं को पहचान कर डॉक्टरों को नवजात शिशु की समुचित देखभाल करने में सहायता प्रदान करती हैं ताकि प्रसव के दौरान जच्चा-बच्चा स्वस्थ्य रह सके।

जे.के.लॉन अस्पताल के अधीक्षक डॉ. अशोक गुप्ता ने बताया कि भारत में हर वर्ष 15 से 21 नवंबर तक ‘न्यूबोर्न केयर वीक’ मनाया जाता है। भारत में साल 2018 में 5 लाख 49 हजार 227 बच्चे अपने जीवन का एक माह पूरा करने से पहले ही चल बसे। हमारा देश दुनिया के उन देशों में शामिल है जहां नवजात बच्चों की मृत्यु का आंकड़ा सबसे ज्यादा है, इसलिए हमारे लिए यह बहुत जरूरी है कि हम यह सप्ताह अपनी आबादी के सबसे कोमल व कमजोर तबके के लिए समर्पित करें।

काफी बच्चे पहले हफ्ते ही जी पाते हैं -:
डॉ. गुप्ता ने बताया कि कुछ सेवाएं ऐसी हैं जो नवजात बच्चों की जिंदगी बचाने के लिए अत्यंत अहम हैं। यह सेवाएं प्रदान करने में नर्स बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, जैसे – प्रसव के वक्त डॉक्टर का सहयोग, स्किन-टू-स्किन केयर, स्तनपान शुरु करवाना, जन्म के बाद सही तापमान बरकरार रखना। राजस्थान में स्थिति राष्ट्रीय आंकड़ों से कुछ ज्यादा भिन्न नहीं है। वर्ष 2017 में राजस्थान में पैदा होने वाले हर 1000 बच्चों में से 278 बच्चे अपने जीवन के पहले महीने में ही चल बसे थे। वास्तविकता यह है कि बहुत से बच्चे अपनी जिंदगी के पहले दिन या पहले हफ्ते से ज्यादा नहीं जी पाते हैं।

‘दक्षता’ और ‘लक्ष्य’ कार्यक्रमों से उपचार -:
हाल ही में भारत सरकार ने ‘दक्षता’ और ‘लक्ष्य’ जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से मानव संसाधन की काबिलियत, इंफ्रास्ट्रक्चर और दवाईयों इत्यादि की अक्षमताओं को हल करते हुए मांओं व नवजात बच्चों को उत्तम उपचार मुहैया कराने का प्रयास किया है। नवजात बच्चों के लिए जीवन रक्षक सेवाओं के बारे में नर्सों समेत लेबर रूम स्टाफ की ट्रेनिंग इन कार्यक्रमों का अहम हिस्सा है। इसके अतिरिक्त भारत सरकार का एक और कार्यक्रम ‘इंडिया न्यूबॉर्न ऐक्शन प्लान’ है जिसका लक्ष्य 2030 तक नवजात बच्चों की मौत एवं मृत पैदा होने वाले बच्चों के आंकड़ों को नीचे लाना है। इस कार्यक्रम के तहत भी गर्भाधान से पहले, गर्भावस्था के दौरान और जन्म के बाद के पहले एक घंटे में उपचार सेवा के लिए नर्सों की भूमिका को पहचाना गया है।

अध्ययन में हुआ खुलासा -:
डॉ. अशोक गुप्ता ने बताया कि 2014 में मध्य प्रदेश में 73 सरकारी स्वास्थ्य केन्द्रों में एक अध्ययन किया गया जिसका उद्देश्य जन्म के समय सेवाएं प्रदान करने में नर्सों की क्षमता का पता लगाना था। इस अध्ययन से मालूम हुआ कि ज्यादातर नर्सें गर्भवती महिला की शारीरिक समीक्षा ठीक से नहीं कर पा रही थीं और केवल आधी से कुछ अधिक ही नर्सें ऐसी थीं, जिन्होंने क्लीनिकल डायग्नोसिस सही से किया था। इससे एक चिंताजनक जानकारी मिलती है कि नर्सों को पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं मिलने से वे जन्म से पहले की जांच के महत्व के बारे में अनजान हैं जोकि जच्चा-बच्चा की मौत का जोखिम घटाने के लिए बेहद जरूरी है।

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